ओ साओ ! तुम कैक छा ?

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पहाड़ के रसूल हमताजोव हैं शेरदा अनपढ़

तुम सुख में लोटी रया,
हम दुःख में पोती रयां !

तुम स्वर्ग, हम नरक,
धरती में, धरती आसमानौ फरक !

तुमरि थाइन सुनुक र्वट,
हमरि थाइन ट्वाटे- ट्वट !

तुम ढडूवे चार खुश,
हम जिबाई भितेर मुस !

तुम तड़क भड़क में,
हम बीच सड़क में !

तुमार गाउन घ्युंकि तौहाड़,
हमार गाउन आसुंकि तौहाड़ !

तुम बेमानिक र्वट खानया,
हम इमानांक ज्वात खानयां !

तुम पेट फूलूंण में लागा,
हम पेट लुकुंण में लागां !

तुम समाजाक इज्जतदार,
हम समाजाक भेड़-गंवार !

तुम मरी लै ज्युने भया,
हम ज्युने लै मरिये रयां !

तुम मुलुक कें मारण में छा,
हम मुलुक पर मरण में छां !

तुमुल मौक पा सुनुक महल बणैं दीं,
हमुल मौक पा गरधन चङै दीं !

लोग कुनी एक्कै मैक च्याल छां,
तुम और हम,
अरे ! हम भारत मैक छा,

ओ साओ ! तुम कैक छा ?

कवि- शेरदा अनपढ़

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