शिकायतें तब भी थीं, अब भी हैं
उत्तराखंड अलग राज्य बनने से पहले यूपी सरकार को लेकर जितनी शिकायतें ‘ पर्वतजन ’ के मानस पर अंकित थीं , उससे कहीं अधिक शिकायतें हल होने के इंतजार में अपनी ही सरकारों का मुहं तक रही हैं। कारण , 17 वर्षों में निस्तारण की बजाए उनकी संख्या ज्यादा बढ़ी है। जिसकी तस्दीक सरकारी आंकड़े करते हैं। यानि कि राज्य निर्माण की उम्मीदें अब तक के अंतराल में टूटी ही हैं। आलम यह रहा कि 17 सालों में पलायन की रफ्तार दोगुनी तेजी से बढ़ी। अब तक करीब 30 हजार से अधिक गांव वीरान हो गए हैं। कई तो मानवविहीन बताए जा रहे हैं। ढाई लाख घरों में ताले लटक चुके हैं। पर्वतीय क्षेत्रों से करीब इस वक्फे में जहां 14 फीसदी आबादी कम हुई , तो राज्य के मैदानी इलाकों में यह छह प्रतिशत से अधिक बढ़ी। नतीजा , पहाड़ को जनप्रतिनिधित्व के तौर पर छह सीटें गंवानी पड़ी हैं , जिसमें 2026 में लगभग 10 सीटें और कम होने का अनुमान है। हाल के चुनाव आयोग के आंकड़ों को समझें , तो हरदिन 250 लोग पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं। अक्टूबर 2016 से सितंबर 2017 तक राज्य में 1,57,672 नाम वोटर लिस्ट से कटे और 11,704 डुप्लीकेट मिले। वहीं , 9,822 नामों को शिफ