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Showing posts from 2017

नशे से इतर भांग की खेती के हैं कई फायदे

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उत्तराखंड की पूर्ववर्ती सरकार ने कारोबारी तौर पर भांग की खेती के लिए कदम उठाए ही थे , कि भद्रजनों और नारकोटिक्स सरीखे विभागों ने कदम उठाने से पहले ही उसके आगे रोड़े ही नहीं , बल्कि एसिड बिखेर दिया। भांग जैसे लाभकारी पौधे को राक्षस नाम दिया जा रहा है। किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि जिनको नशा ही करना है उन्हें खेत के भांग की आवश्यकता नहीं होती है। जूं के डर से कपड़े पहनना बंद नहीं किया जाता। वैसे ही नशा व्यापार के डर से भांग उगाने की नीति बंद नहीं की जानी चाहिए। मनुष्य सभ्यता में भांग की खेती पुरातन खेतियों में से एक है। सवाल यह है कि किस तरह भांग का औद्योगिक उत्पादन किया जाए , ताकि आर्थिक क्रान्ति आ सके। एक समय 18 वीं सदी में काशीपुर में ईस्ट इंडिया कंपनी की फैक्ट्री के कारण पहाड़ों में भांग खेती में वृद्धि हुई थी। लिहाजा , भांग को निर्यात माध्यम समझकर ही इसे अपनाया जाना चाहिए। भांग की खेती अनेक लाभ पर्यावरण संबंधी लाभ ·          भांग कोयला का सर्वोत्तम पर्याय है और इसकी जैविक ईंधन क्षमता कोयले से कहीं अधिक है। ·          उत्तराखंड में अंग्रेजों के आने से पहले भांग उत्तम

जादूगर खेल दिखाता है

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जादूगर खेल दिखाता है अपने कोट की जेब से निकालता है एक सूर्ख फूल और बदल देता है उसे पलक झपकते ही नुकीले चाकू में तुम्हें लगता है जादूगर चाकू को फिर से फूल में बदल देगा पर वो ऐसा नहीं करता वो अब तक न जाने कितने फूलों को चाकुओं में बदल चुका है। जादूगर पूछता है कौन सी मिठाई खाओगे ? वो एक खाली डिब्बा तुम्हारी ओर बढ़ाता है तुमसे तुम्हारी जेब का आखिरी बचा सिक्का उसमें डालने को कहता है और हवा में कहीं मिठाई की तस्वीर बनाता है तुम्हारी जीभ के लार से भरने तक के समय के बीच मिठाई कहीं गुम हो जाती है तुम लार को भीतर घूटते हो कुछ पूछने को गला खंखारते हो तब तक नया खेल शुरू हो जाता है। जादूगर कहता है मान लो तुम्हारा पड़ोसी तुम्हें मारने को आए तो तुम क्या करोगे ? तुम कहते हो , तुम्हारा पड़ोसी एक दयालू आदमी है जादूगर कहता है , मान लो तुम कहते हो , आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ जादूगर कहता है , मान लो मानने में क्या जाता है ? तुम पल भर के लिए मानने को राजी होते हो तुम्हारे मानते ही वह तुम्हारे हाथ में हथियार देकर कहता है इससे पहले कि वो तुम्हें मारे , तुम उसे म

‘लोक’ की भाषा और संस्कृति को समर्पित किरदार

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ब्यालि उरडी आई फ्योंली सब झैड़गेन/किनगोड़ा , छन आज भी हंसणा...। बर्सु बाद मी घौर गौं , अर मेरि सेयिं कुड़ि बिजीगे...। जंदरि सि रिटणि रैंद , नाज जन पिसैणि रैंद..। परदेश जैक मुक न लुका , माटा पाणी को कर्ज चुका..। इन रचनाओं को रचने वाली शख्सियत है अभिनेता , कवि , लेखक , गजलकार , साहित्यकार मदनमोहन डुकलान। जो अपनी माटी और दूधबोली की पिछले 35 वर्षों से सेवा कर रहे हैं। 10 मार्च 1964 को पौड़ी जनपद के खनेता गांव में श्रीमती कमला देवी और गोविन्द राम जी के घर मदन मोहन डुकलान का जन्म हुआ था। जब ये महज पांच बरस के थे , तो अपने पिताजी के साथ दिल्ली चले गए। इन्होंने 10 वीं तक की पढ़ाई दिल्ली में ग्रहण की। जबकि 12 वीं देहरादून से और स्नातक गढ़वाल विश्वविद्यालय से। बेहद सरल , मिलनसार स्वभाव और मृदभाषी ब्यक्तित्व है इनका। जो एक बार मुलाकात कर ले जीवनभर नहीं भूल सकता है इन्हें। क्योंकि पहली मुलाकात में ये हर किसी को अपना मुरीद बना देते हैं। यही इनकी पहचान और परिचय है। बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी मदन मोहन डुकलान अपने पिताजी के साथ जब दिल्ली आये , तो उसके बाद उनका अपने गांव और पहाड़

17 साल बाद भी क्यों ‘गैर’ है ‘गैरसैंण’

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गैरसैंण एकबार फिर से सुर्खियों में है। उसे स्थायी राजधानी का ओहदा मिल रहा है ? जी नहीं! अभी इसकी दूर तक संभवनाएं नहीं दिखती। सुर्खियों का कारण है कि बर्तज पूर्ववर्ती सरकार ही मौजूदा सरकार ने दिसंबर में गैरसैंण में एक हफ्ते का विधानसभा सत्र आहूत करने का निर्णय लिया है। जो कि सात से 13 दिसंबर तक चलेगा। विस सत्र में अनुपूरक बजट पास किया जाएगा। इसके लिए आवश्यक तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं। तो दूसरी तरफ गैरसैंण पर सियासत भी शुरू हो गई है।  कांग्रेस और यूकेडी नेताओं ने जहां भाजपा सरकार की नियत पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं, वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने भी ‘ जनभावनाओं ’ के अनुरूप निर्णय लेने की बात को दोहरा भर दिया है। दरअसल , उत्तराखंड के पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आने से अब तक गैरसैंण के मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा का अतीत सवालों में रहा है। दोनों दल उसे स्थायी राजधानी बनाने के पक्षधर हैं , ऐसा कभी नहीं लगा। यूकेडी ने राज्य आंदोलन के दौरान गैरसैंण को पृथक राज्य की स्थायी राजधानी बनाने के संकल्प के तहत जरूर उसे वीर चंद्रसिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर का नाम दिया। लेकिन बीते 17

उत्तराखंड में एक और फूलों की घाटी ‘चिनाप’

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विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी से तो हर कोई परिचित है। लेकिन इससे इतर एक और फूलों की जन्नत है चिनाप घाटी। जिसके बारे में शायद बहुत ही कम लोगों को जानकारी होगी। सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ ब्लाक में स्थित है कुदरत की ये गुमनाम नेमत। जिसका सौंदर्य इतना अभिभूत कर देने वाला है कि देखने वाला इसकी सुंदरता से हर किसी को ईर्ष्या होने लगे। गौरतलब है ये घाटी चमोली के जोशीमठ ब्लाक के उर्गम घाटी , थैंग घाटी व खीरों घाटी के मध्य हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों की तलहटी में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर 300 से अधिक प्रजाति के फूल बेपनाह सुंदरता और खुशबू बिखेरे रहते हैं। पुराणों में भी इसकी सुंदरता और खुशबू के बारे में वर्णन है। जिसमें कहा गया है कि यहां के फूलों की सुंदरता व खुशबू के सामने बद्री नारायण और गंधमान पर्वत के फूलों की सुंदरता व खुशबू न के बराबर है। वैसे इस घाटी की सुंदरता 12 महीने बनी रहती है। लेकिन खासतौर पर जुलाई से लेकर सितंबर के दौरान खिलने वाले असंख्य फूलों से इस घाटी का अविभूत कर देने वाला सौंदर्य बरबस ही हर किसी को अपनी ओर खींचने को मजबूर कर देता है। इस घाटी

शिकायतें तब भी थीं, अब भी हैं

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  उत्तराखंड अलग राज्य बनने से पहले यूपी सरकार को लेकर जितनी शिकायतें ‘ पर्वतजन ’ के मानस पर अंकित थीं , उससे कहीं अधिक शिकायतें हल होने के इंतजार में अपनी ही सरकारों का मुहं तक रही हैं। कारण , 17 वर्षों में निस्तारण की बजाए उनकी संख्या ज्यादा बढ़ी है। जिसकी तस्दीक सरकारी आंकड़े करते हैं। यानि कि राज्य निर्माण की उम्मीदें अब तक के अंतराल में टूटी ही हैं। आलम यह रहा कि 17 सालों में पलायन की रफ्तार दोगुनी तेजी से बढ़ी। अब तक करीब 30 हजार से अधिक गांव वीरान हो गए हैं। कई तो मानवविहीन बताए जा रहे हैं। ढाई लाख घरों में ताले लटक चुके हैं। पर्वतीय क्षेत्रों से करीब इस वक्फे में जहां 14 फीसदी आबादी कम हुई , तो राज्य के मैदानी इलाकों में यह छह प्रतिशत से अधिक बढ़ी। नतीजा , पहाड़ को जनप्रतिनिधित्व के तौर पर छह सीटें गंवानी पड़ी हैं , जिसमें 2026 में लगभग 10 सीटें और कम होने का अनुमान है। हाल के चुनाव आयोग के आंकड़ों को समझें , तो हरदिन 250 लोग पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं। अक्टूबर 2016 से सितंबर 2017 तक राज्य में 1,57,672 नाम वोटर लिस्ट से कटे और 11,704 डुप्लीकेट मिले। वहीं , 9,822 नामों को शिफ

सिर्फ आलोचना करके तो नहीं जीत सकते

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उत्तराखंड क्रांति दल खुद को अपनी ‘ आंदोलनकारी संगठन ’ की छवि से मुक्त कर एक जिम्मेदार और परिपक्व राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित करना चाहता है। इसके पीछे निश्चित ही उसके तर्क हैं। जिन्हें अनसुना तो कम से कम नहीं किया जा सकता है। मगर , अतीत में आंदोलनकारी संगठन और फिर सियासी असफलताओं के आलोक में उसके लिए मनोवांछित ‘ कायाकल्प ’ आसान होगा ? यूकेडी जिस फार्मेट में अब सामने आना चाहती है , उसका यह नया अवतार जनमन को स्वीकार्य होगा ? राज्य के मौजूदा सियासी परिदृश्य में कोई स्पेस बाकी है ? खासकर तब जब 17 बरसों में कांग्रेस और भाजपा ने जनता के बीच खुद को लगभग एक-दूसरे का पूरक मनवा लिया हो। पृथक उत्तराखंड की लड़ाई में उक्रांद के संघर्ष को कौन भला नकार सकता है। 1994 के राज्य आंदोलन का अगवा भी लगभग वही रहा। परिणाम निकला और नौ नवंबर सन् 2000 में आखिरकार अलग राज्य की नींव पड़ी। तब नेशनल मीडिया तक ने उत्तराखंड में यूकेडी को तीसरी ताकत के तौर पर विशेष तौर से पेश किया। अलग राज्य में सन् 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में दल को जनता ने चार सीटें दीं। किंतु , वह अगले पांच साल में खुद को एक राजनीतिक

जहां बिखरी है कुदरत की बेपनाह खूबसूरती

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उत्तराखंड के हिमालय में कई छोटे-बड़े बुग्याल मौजूद हैं। औली , गोरसों बुग्याल , बेदनी बुग्याल , दयारा बुग्याल , पंवालीकांठा , चोपता , दुगलबिट्टा सहित कई बुग्याल हैं , जो बरबस ही सैलानियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। लेकिन इन सबसे अलग बेपनाह हुस्न और अभिभूत कर देने वाला सौंदर्य को समेटे सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित आली बुग्याल आज भी अपनी पहचान को छटपटाता नजर आ रहा है। प्रकृति ने आली पर अपना सब कुछ लुटाया है , लेकिन नीति नियंताओं की उदासीनता के कारण आज आली हाशिए पर चला गया है। जान लें कि पहाड़ों में जहां पेड़ समाप्त होने लगतें हैं यानि की टिंबर रेखा , वहां से हरे भरे मखमली घास के मैदान शुरू हो जाते हैं। आपको यहीं पर स्नो और ट्री लाइन का मिलन भी दिखाई देगा। उत्तराखंड में घास के इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। ये बुग्याल बरसों से स्थानीय लोगों के लिए चारागाह के रूप में उपयोग में आतें हैं। जिनकी घास बेहद पौष्टिक होती हैं। इन मखमली घासों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछती है , तो ये किसी जन्नत से कम नजर नहीं आते हैं। इन बुग्यालों में आपको नाना प्रकार के फूल और वनस्पति लकद