Posts

Showing posts from February, 2014

कन्फ्यूजिंग प्रश्नों पर चाहूं रायशुमारी

      अपने भविष्य को लेकर आजकल बड़ा कन्फ्यूजिया गया हूं। निर्धारण नहीं कर पा रहा हूं , कौन सा मुखौटा लगाऊं। आम- आदमी ही बना रहूं , या आम और आदमी के फेविकोल जोड़ से ‘ खास ’ हो जाऊं। अतीत के कई वाकये मुझे पसोपेस में डाले हुए हैं। कुछ महीने पहले मेरी गली का पुराना ‘ चिंदी चोर ’ उर्फ ‘ छुटभैया ’ धंधे को सिक्योर करने की खातिर ‘ खास ’ बनना , दिखना और हो जाना चाहता था। एक ही सपना था उसका , कि बाय इलेक्शन या सेलेक्शन वह किसी भी सदन तक पहुंच जाए। फिर बतर्ज एजूकेशनल टूर हर महीने ‘ बैंकाक ’ जैसे स्वर्गों की यात्रा कर आए। मगर , कल जब वह नुक्कड़ पर ‘ सुट्टा ’ मारते मिला , तो बोला- दाज्यू अब तुम बताओ यह ‘ आम आदमी ’ बनना कैसा रहेगा ? मैं हतप्रभ। देखा उसे , तो उसमें साधारण आदमी से ज्यादा ‘ आप ’ वाला ‘ आदमी ’ बनने की ललक दिखी , सो कन्फ्यूजिया गया। इसलिए उसे जवाब देने की बजाए मैं ‘ मन-मोहन ’ हो गया। फिर सोचा क्यों न आपके साथ ही चैनलों की ‘ डिबेट ’ टाइप बकैती की जाए। बैठो , बात करते हैं , हम- तुम , इन कन्फ्यूजियाते प्रश्नों पर। आपसे रायशुमारी अहम है मेरे लिए। तब भी फलित न निकला तो एसएमएस , एफबी ,

बसंत

Image
लो फिर आ गया बसंत अपनी मुखड़ी में मौल्‍यार लेकर चाहता था मैं भी अन्‍वार बदले मेरी मेरे ढहते पाखों में जम जाएं कुछ पेड़ पलायन पर कस दे अपनी जड़ों की अंग्‍वाळ बुढ़ी झूर्रियों से छंट जाए उदासी दूर धार तक कहीं न दिखे बादल फटने के बाद का मंजर मगर बसंत को मेरी आशाओं से क्‍या उसे तो आना है कुछ प्रेमियों की खातिर दो- चार फूल देकर सराहना पाने के लिए इसलिए मत आओ बसंत मैं तो उदास हूं धनेश कोठारी कापीराइट सुरक्षित @2013

सिखै

सि हमरा बीच बजार दुकानि खोलि भैजी अर भुल्‍ला ब्‍वन्‍न सिखीगेन मि देळी भैर जैक भैजी अर भुल्‍ला व्‍वन्‍न मा सर्माणूं सिखीग्‍यों कापीराइट सुरक्षित 2010 मा मेरी लिखीं एक गढ़वळी कविता