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Showing posts from 2013

एक और सम्‍मान

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   ऋषिकेश प्रेस क्‍लब में निर्विरोध निर्वाचन के बाद मुझे आशीर्वाद देते क्‍लब के वरिष्‍ठ सदस्‍य आभार प्रेस क्‍लब के सभी साथियों का

तेरा गौं औऊ जब बिटि

हेमवतीनंदन भट्ट 'हेमू' का लिखा और गया गया एक कर्णप्रिय गढ़वाली गीत http://www.4shared.com/mp3/1LIWPoxT/TERU_GAUN_AUNU_JAB_.html

ईं मुंदड़ी रखि समाळी

 युवा गायक बिशन सिंह चौहान का लिखा व गाया एक सुंदर प्रेमगीत http://www.4shared.com/mp3/uCYyLyum/INE_MUNDI.html

युवा गायक बिशन सिंह चौहान 1

युवा गायक बिशन सिंह चौहान 1 http://www.4shared.com/mp3/V7okmfuw/SERA_GHARWAL_MAA.html

हेमू भट्ट गीत 1

हेमू भट्ट गीत 1 http://www.4shared.com/mp3/_MK1yysj/MERU_RAUNTEULU_SALAN.html

मेरा एक गीत

यह गीत मैंने पुरानी टिहरी के डूबने से लगभग एक दशक पहले लिखा था। जिसे 1998 में हेमवतीनंदन भट्ट व मंगला रावत ने गाया आपको समर्पित यह गीत http://www.4shared.com/mp3/NMHZz9Oz/BHOL_DOOBI_JAAN.html

मेरा लिखा यह गीत

मेरे लिखा यह गीत शुरू में आमंत्रण देता सा लगता है, मगर अंतराओं में शराब से पनपने वाली विसंगतियों को सामने रखता है। आप भी सूनें http://www.4shared.com/mp3/eH2O-75c/DAARU_KI_BOTAL.html

बाबा की मूर्ति फिर चर्चाओं में....

       भई देश दुनिया में उत्‍तराखंड त्रासदी की प्रतीक बनी मूर्ति और बाबा एक बार फिर चर्चा में हैं। और यह बहस शुरू हुई, 31 अक्‍टूबर गुरुवार को मूर्ति को लगाने और उसी रात उसे हटाने के बाद से। क्षेत्र में कुछ बाबा के पक्ष और कुछ विपक्ष में आ गए हैं। दुहाई दी जा रही है कि यह यहां का आकर्षण है, इसे दोबारा लगना चाहिए। लेकिन कुछ बैकडोर में यह भी बतिया रहे हैं कि क्‍या यह गंगा पर अतिक्रमण नहीं। जब बीते 17 जून 2013 को पूर्वाह्न करीब साढ़े 11 बजे आक्रोशित गंगा ने रास्‍ते में आड़े आ रही मूर्ति को अपने आगोश में जब्‍त कर लिया, तो महज आध-पौन घंटे के भीतर यह देश दुनिया के मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगी थी। बड़ी बात कि देश के मीडिया को यह फुटेज उनके किसी रिपोर्ट ने नहीं, बल्कि इस मूर्ति के साधकों की तरफ से ही भेजी गई बताते हैं। सवाल तब भी उठे कि आखिर मीडिया में सुर्खियां बटोरने के पीछे फाइबर की इस मूर्ति का फायदा क्‍या रहा होगा। खैर यह बीती बात हो गई। नतीजा, श्रावणमास के बाद तक तीर्थनगरी ऋषिकेश में भी खौफ के चलते पर्यटक नहीं आए। उन्‍हें लगा कि मूर्ति बह गई, तो अब वहां क्‍या बचा होगा। जिसका नुकसान

हेमू भट्ट गीत 2

हेमू भट्ट द्वारा लिखा और गाया एक बेहद चर्चित गीत  http://www.4shared.com/mp3/ppt1-Jad/COLD_DRINK_BEER_BAR.html

1996 में मेरा लिखा गीत

1996 में मेरा लिखा यह गीत प्रसिद्ध गायिका मंगला रावत द्वारा गाया गया था  http://www.4shared.com/mp3/o4q6ekLK/Kab_Puri_Hweli_Jagwal.html

हे उल्‍लूक महाराज

आप जब कभी किसी के यहां भी पधारे, लक्ष्‍मी जी ने उसकी योग्‍यता देखे बगैर उसी पर विश्‍वास कर लिया। जिसका नतीजा है कि बांधों के, राज्‍य के, सड़कों के, पुलों के, पैरा पुश्‍तौं के, पीएमजीवाई के, मनरेगा आदि के बनने के बाद वही असल में आपका परम भक्‍त हो गया। वहीं आपदा की पीड़ा के बाद भी बग्‍वाळ को उत्‍साह के रुप में देख और मनाने को उतावला है। उसके अंग अंग से पटाखे फूट रहे हैं, लालपरी उसे झूमने के लिए प्रेरित कर रही है। आपकी कृपा पंथनिरपेक्ष, असांप्रदायिक, अक्षेत्रवादी है। आप अपने वंश पूजकों के लिए कृपा पात्र हैं मगर, मेरे लिए यह समझ पाना कुछ मुश्किल हो रहा है कि आपके कृपापात्रों की लाइन में लगने के क्‍या उत्‍तराखंड राज्‍य और उसके मूल अतृप्‍त वंशज भी लायक हैं या नहीं। क्‍या आपका और आपकी महास्‍वामिनी का ध्‍यान उनकी ओर भी जागेगा। या फिर वे केवल शहीद होने, लाठियां खाने, भेळ भंगारों में लुढ़कने, दवा, शिक्षा, रोजगार, मूलनिवास आदि के लिए तड़पने तक सीमित रहेंगे।  हे उल्‍लूक महाराज, इस अज्ञानी, अधम, गुस्‍ताख का मार्गदर्शन करने की कृपा करें। बताएं कि महा कमीना होने के लिए पहाड़ों में क्‍या बेचूं,

मेरा गाया एक गीत

1997 में मेरे द्वारा गाया और हेमू द्वारा लिखा गढ़वाली गीत http://www.4shared.com/mp3/5D43gXkv/CHUP_CHA_YUN_GAUN.html

ड्यूटी च प्‍यारी बर्फीला लदाख

ड्यूटी च प्‍यारी बर्फीला लदाख...... http://www.4shared.com/mp3/ljZy9hWc/DUTY_CHA_PYARI.html  हेमवतीनंदन भट्ट हेमू' का लिखा और गाया हुअा एक गीत

राइट टू रिजैक्‍ट शुभ, मगर कितना.... ?

राइट टू रिजेक्‍ट स्‍वस्‍थ लोकतंत्र के लिए शुभ माना जा सकता है , मगर कितना ? इस पर भी सोचा जाना चाहिए। खासकर इसलिए कि क्‍या अब तक नकारात्‍मक वोटों से संसद या विधानसभाओं में पहुंचने वाले इससे रुक पाएंगे। शायद जानकार मानेंगे कि उनका जवाब ना में ही होगा। कारण कुछ लोग जो पहले भी वोट नहीं देते थे , क्‍या वह देश की राजनीतिक व्‍यवस्‍था पर प्रश्‍नचिह्न नहीं था ? हां अब इतना फर्क होगा कि नकारात्‍मक वोट की संख्‍या सार्वजनिक हो जाएगी। लेकिन फिर वही सवाल कि क्‍या इससे फायदा होगा ? मेरा मानना है कि राइट टू रिजेक्‍ट से बड़ा बदलाव आए या नहीं , लेकिन देश के शिक्षित वर्ग के रुझान का पता जरुर चल सकता है। कारण , देश में अब तक अनपढ़ों को किसी के भी पक्ष में बरगलाने में इसी वर्ग का सबसे बड़ा हाथ रहा है , और यही वर्ग चुनाव के बाद हरबार राजनीतिक प्रणाली , राजनेताओं , पार्टियों को बीच चौराहे बातों बातों में गालियां भी देता रहा है। सो साफ है कि अब उसे वोट के इस्‍तेमाल से पहले अपने चयन पर किंतु - परंतु के साथ मुहर लगानी होगी। वरना उसकी भूमिका , अंधभक्ति , स्‍वार्थ को भी सब जान जाएंगे। हां एक बात अवश्‍य कही

तय मानों

तय मानों देश लुटेगा बार-बार, हरबार लुटेगा तब-तब, जब तक खड़े रहोगे चुनाव के दिन अंधों की कतारों में समझते रहोगे- ह्वां- ह्वां करते सियारों के क्रंदन को गीत जब तक पिघलने दोगे कानों में राष्‍ट्रनायकों का 'सीसा' अधूरे ज्ञान के साथ दाखिल होते रहोगे चक्रव्‍यूह में बने रहोगे आपस में पांडव और कौरव तय मानों देश के लुटने के जिम्‍मेदार तुम हो, और कोई नहीं सर्वाधिकार- धनेश कोठारी

क्‍या यह चिंताएं वाजिब लगती हैं..

कोश्‍यारी जी को चिंता है कि यदि आपदा प्रभावित गांवों को जल्‍द राहत नहीं दी गई तो नौजवान माओवादी हो जाएंगे। समझ नहीं पा रहा हूं कि माओवादी होना क्‍या राष्‍ट्रद्रोही होना है, क्‍या माओवादी बनने का आशय आंतकी बनने जैसा है, यदि इन जगहों पर माओवादी पनप गए तो क्‍या पहाड़ और ज्‍यादा दरकने लगेंगे, क्‍या ये गांवों में लूटपाट शुरू कर देंगे, क्‍या ये लोग खालिस्‍तान या कश्‍मीर की तरह अलग देश की मांग कर बैठेंगे, आखिर क्‍या होगा यदि माओवाद को आपदा पीडि़त बन गए तो... बड़ा सवाल यह कि ऐसी चिंता सिर्फ कोश्‍यारी जी की ही नहीं है, बल्कि राज्‍य निर्माण के बाद कांग्रेस, बीजेपी नौकरशाहों की चिंताओं में यह मसला शामिल रहा है। इसकी आड़ में केंद्र को ब्‍लैकमेल किया जाता रहा है, और किए जाने का उपक्रम जारी है। यहां एक और बात साफ कर दूं कि मेरे जेहन में उपजे उक्‍त प्रश्‍नों का अर्थ यह न निकाला जाए कि मैं माओवाद का धुर समर्थक या अंधभक्‍त या पैरोकार हूं। बल्कि जिस तरह से पहाड़ के नौजवानों के माओवादी होने की चिंताएं जताई गई हैं, वह एक देशभक्‍त पहाड़ को गाली देने जैसा लग रहा है, जिसके युवा आज भी सेना में जाकर देश के

कौन संभालेगा पहाड़ों को...

पहाड़ों पर कौन बांधेगा 'पलायन' और 'विस्‍थापन' को... अब तक या कहें आगे भी पलायन पहाड़ की बड़ी चिंता में शामिल रहा, और रहेगा। मगर अब एक और चिंता 'विस्‍थापन' के रुप में सामने आ रही है। पहाड़ के जर्रा-जर्रा दरकने लगा है। गांवों की जिंदगी असुरक्षित हो गई है। सदियों से पहाड़ में भेळ्-पखाण, उंदार-उकाळ, घाम-पाणि, बसगाळ-ह्यूंद, सेरा-उखड़ से सामंजस्‍य बिठाकर चलने वाला पहाड़ी भी थर्र-थर्र कांप रहा है। नित नई त्रासदियों ने उसे इतना भयभीत कर दिया है कि अब तक रोजी-रोटी के बहाने से पलायन करने की उसकी मजबूरी के शब्‍दकोश में 'विस्‍थापन' नामक शब्‍द भी जुड़ गया है। मजेदार बात कि कथित विकास की सड़कें भी उसके काम नहीं आ रही हैं, बल्कि भूस्‍खलन के रुप में मौत की खाई पैदा कर रही हैं। अब तक उसने कुछ अपने ही रुजगार के लिए बाहर भेजे थे। लेकिन अब वह खुद भी यहां से विस्‍थापित हो जाना चाहता है। निश्चित ही उसकी चिंताओं को नकारना मुश्किल है। क्‍योंकि जीवन को सुखद तरीके से जीने का उसका मौलिक हक है। जिसे अब तक किसी न किसी बहाने से छीना जाता रहा है। अब जब पहाड़ ही ढहने लगे हैं, और उ

बाबा केदार के दरबार में

जगमोहन  ' आज़ाद '//  खुद के दुखों का पिटारा ले खुशीयां समेटने गए थे वो सब जो अब नहीं है ... साथ हमारे , बाबा केदार के दरबार में हाथ उठे थे ... सर झुके थे दुआ मांगने के लिए ... बहुत कुछ पाने के लिए अपनो के लिए - मगर पता नहीं ... बाबा ने क्यों बंद कर ली - आंखे हो गए मौन - मां मंदाकिनी भी गयी रूठ   ... और ... फिर .. सूनी हो गयी कई मांओं की गोद बिछुड़ गया बूढे मां - पिता का सहारा उझड़ गयी मांग सुहानगों की छिन गया निवाला कई के मुंह से ढोल - दमाऊ - डोंर - थाली लोक गीत की गुनगुनाहट हो गयी मौन .... हमेशा - हमेशा के लिए , कुछ नम् आँखे जो बची रह गयी .... खंड - खंड हो चुके गांव में ... वो खोज रही है ... उन्हें जो कल तक खेलते - कुदते थे गोद में , खेत - खलिहान में इनके , असंख्य लाशों के ऊपर ... चिखते - बिलखते हुए बाबा केदार के दरबार में ... । किसको समेट किस - किस को गले लगा कर समेटे आंसू ... इनके अंजूरी में अपने किसी मां की गोद में ले

क्या फर्क पड़ता है

ये इतनी लाशें किस की हैं क्यों बिखरी पड़ी हैं ये बच्चा किसका है मां को क्यों खोज रहा है .... मां मां चिलाते हुए दूर उस अंधेरे खंडहर में वो सफेद बाल ... बूढी नम आंखें क्यों लिपटी हैं एक मृत शरीर से क्यों आखिर क्यों बिलख रही है नयी नवेली दुल्हन उस मृत पड़े शरीर से लिपट , लिपट कर क्यों ज़मींदोज़ हो गए गांव के गांव कल तक जिन खेत - खलिहानों में खनकती थी चूड़ियां बेटी बहुओं के हाथों में गुनगुनाते थे ... लोक गीत फ्योली - बुरांश के फूल भी वो क्यों सिसक रहे हैं ... वहां जहां कल तक वो खिलखिलाते थे .... ढोल - दमाऊ - डोंर - थाली आखिर क्यों मौन ... हो गए क्यों कर ली बंद आंखें देवभूमि के देवताओं ने बाबा केदार के दरबार में .... इस मौन से , इस टूटने - बिखरने से उनको क्या फर्क पड़ता है जो सुर्ख सफेद वस्त्र पहन गुजर रहे हैं इन लाशों और खंडहर हो चुकी ज़मीं के ऊपर से जो खुद को सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं खंड - खंड हो चुक