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Showing posts from February, 2012

भाषाई विरासत को बचाना बड़ी चुनौती

धाद : लोकभाषा एकांश द्वारा आयोजित  ”आखिर कैसे बचेंगी लोकभाषाएं  ” व्याख्यान माला-4 समाज और सरकार दोनों स्तरों पर उत्तराखंड की लोकभाषाओं की निरन्तर अनदेखी होती रही है जिसका नतीजा है के कुमाऊंनी और गढ़वाली दोनों भाषाएं अपने मूल से कटने लगी हैं। मौजूदा वक्त में भाषायी विरासत को बचाये रखना एक बड़ी चुनौती है। ये बातें सामने आईं देहरादून में हुए एक संगोष्ठी में। अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर धाद : लोकभाषा एकांश की ओर से “आखिर कैसे बचेंगी लोक भाषाएं ” व्याख्यान माला – 4 के तहत ये आयोजन किया गया था। प्राथमिक शिक्षा  में लोक भाषाओं की प्रासंगिता' विषय पर ये संगोष्ठी राजेश्वर नगर सामुदायिक केंद्र , सहस्रधारा रोड में आयोजित की गई थी। हिमालयी  लोकभाषाओं पर शोधकर्ता डाo कमला पन्त ने मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी लोकभाषाओं में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो अन्य भाषाओं में नहीं हैं | आज के वैश्विकरण के दबाव  में इन भाषाओं पर मंडरा रहे खतरे के प्रति हमें सजग होकर अपनी मातृभाषाओं के विकास  के लिये  इस रचनात्मक आन्दोलन  को आगे बढ़ाना चाहिए  |

बुडया लापता : रौंस दिलंदेर हंसोड्या स्वांग फाड़ी - १

मुंबई का सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, लिखवार, स्वांगकर्ता भग्यान दिनेश भारद्वाज , अर सामाजिक कार्यकर्ता रमण कुकरेती को लिख्युं नाटक ' बुडया लापता' पर लिखण से पैली नाटक कत्ति किस्मौ होन्दन पर ज़रा छ्वीं लगी जवान त ठीकि रालो स्वांग/नाटकूं तैं भौं भौं ढंग मा फड़े (विभाजित ) जै सक्यांद १ - रचनौ हिसाबन - एक दृषौ एकांकी, बिंडी दृश्यौ एकांकी, सूत्रधारी अर एक पात्रीय नाटक २- साधनौ हिसाबन - स्टेज, टेलीविजन/वीडिओ/फिल्म/रेडिओ , नुक्कड़ बानौ जन स्वांग ३- भाषौ हिसाबन - गद्यात्मक, पद्यात्मक, गद्य-पद्य वळ, म्यूजिकल ड्रामा ४- वाद या सिधांत वळा स्वांग - आदर्शवादी, असलियत वादी , अति असलियत वादी, प्रगतिवादी, साम्यवादी या समाजवादी, धार्मिक पंथवादी, कलावादी, प्रभाव वादी, प्रतीकात्मक या हौर कें हैंकि कला से प्रभावित नाटक ५- विषयौ हिसाबन - सामाजिक, इतियासौ , राजनैतिक, चरित्र प्रधान स्वांग ६- बृति हिसाबन - समस्या प्रधान, व्यंगात्मक , हंसोड़ी गम्भीर, आलोचनात्मक , अनुभूति प्रधान जन रुवाण वळ आदि ७- ब्युंत/शैली हिसाबन - शब्द-अर्थ

खाडू लापता नाटक : अंध विश्वासुं पर कटाक्ष

ललित मोहन थपलियाल जी कु लिख्युं एकांकी' खडू लापता ' गढवाळ ऐ जिंदगी कु भौत इ सजीव चित्रण प्रस्तुत करदो एकांकी मा सिरफ़ चार इ पत्र छन - पंडित जी , जु अपणि ज्वानी मा डिल्ली कै सरकारी दफ्तर मा चपड़ासी छ्या अर अब उना कुछ टूणा-मूणा , दवै-दारु सीख अर गाँव मा मजा की जिंदगी बिताणा छन. यांका अलावा गाँवों मोती अकलौ हरि सिंग , गौं कु चकडैत परमा अर डिल्ली बटें छूटी फर अयूं तुलसी राम. गौं मा जारी अंधविश्वास फर कटाक्ष थपलियाल जीन भलो तरीका से करै, हरि सिंगू खाडू चुरयै जांद वो गणत कराणो बैद जी क पास जान्द. बैद जी ब्तान्दन बल नरसिंग क द्वाष लग्युं च .फिर हरि सिंग तैं बौम होंद बल ना हो कि कखि चकडैत परमा अर तुलसीराम न जी खाडू चट्ट नि कौरी दे ह्वाऊ .सरल मनिख हरि सिंग खाडू तैं खुजदा खुजदा हडका मिल्दन परमा क कुलण. हरि सिंग कुलादी लेकी जांद बैद जीक पास की आज वैन परमा तैं कचे दीण जैन वैको खाडू चट्ट कै दे. इखम लिख्वार गाँव कु सरल हिरदै मनिखों चित्रण करदो . तुलसी राम जु डिल्ली मा चपड़सि च अर वो पन्डि जी मा अपणि हड़का मरदो बल ' बैद राज

गिरीश सुंदरियालौ नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण - फाड़ी -१

इकीसवीं सदी क गढ़वाळी स्वांग/नाटक -२ 'असगार' गिरीश सुन्दरियालौ स्वांग खौळ 'असगार' मादे एक स्वांग च . हाँ असगार मा चरित्र चित्रण से पैलि 'स्वांगु मा चरित्र चित्रण ' पर छ्वीं लगाण जरूरी ह्व़े जांद. १- पुरातन चीनी सिद्धांत २- पाश्चात्य सिद्धांत ३-- भारतीय सिद्धांत ४- मनोविज्ञानऔ ज्ञान चीन मा स्वांग चीन मां स्वांग भैर बिटेन आई . मंगोल स्वांग तैं चीन मा लैन पण चीन मा स्वांग बढण मा कन्फ्युसिस अर बुद्धौ सिधांत दगड़ी चलीन. इलै चीन मा उद्येसात्म्क स्वांग जलदा मिल्दा छ्या चीन मा क्वी भरत या अरस्तु जन क्वी नाट्य शास्त्री नि ह्व़े जैन क्वी किताब लेखी ह्वाओ . पण चीन का पुराणा स्टाइल च . चीन मा आठवीं सदी पैथर इ नाटक जादा विकसित ह्व़े . अर इन बुले जान्द बल हरेक गाँ मा स्वांग खिले जांद छा. पैल स्वान्गुं मा नाच अर गाणा जरुरी छ्या. स्वान्गुं मा प्रतीक को जादा इस्तेमाल हूंद छयो. 'टछौउएन खि' प्रकारौ (७०० -९०७ ई.) वीर रसौ स्वांग छ्या. संग राज मा (९६०-१११९) स्वान्गु मा हौर विकास ह्