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नदी क्यों सिखाया मुझे

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नदी ! तुने क्यों सिखा दिया मुझे अपनी तरह बहने का पाठ सब कुछ बहाने की आदत क्यों ? प्रश्रय दिया पहाड़ों से निकल मैदानों में समतल होने को अब, उतर आने के बाद क्यों नहीं सिखा सकी कहीं पत्थरों, गंगल्वाड़ों की ओट में ठहरने का हुनर हां मुझे सिखाने से पहले भी तो बन सकते थे बांध जहां ठहरकर मैं वापस लौटता चिन्यालीसौड़ या पीछे तक समतल में तो तेरी तरह गंदला गया हूं न अर्घ्य के और न आचमन लायक नदी ! मैं अपने दोष मढ़ रहा हूं तुझ पर क्योंकि, जी हलका करना है यद्यपि तुने तो सिर्फ रास्ता भर दिखाया था सच ही तो है कि सिखने का उतावलापन तो मेरा ही था सर्वाधिकार- धनेश कोठारी