वरिष्ट साहित्याकार श्री भीष्म कुकरेती का दगड़ वीरेंद्र पंवार कि छ्वीं-बत्थ

वीरेन्द्र पंवार : तुमारा दिखण मा अच्काल गढवाळी साहित्य कि हालात कनि च ?
भीष्म : मी माणदो गढवाळी साहित्य कु हाळ क्वी ख़ास भलु नि च। थ्वाड़ा कविता अर गीतुं बटें आश छ बि च। स्वांगूं बटें उम्मेद छै पण, जब स्वांग इ नि खिल्येणा छन त क्य बोले सक्यांद। बकै गद्य मा त जख्या भन्गलु जम्युं च। जु साहित्यऔ छपण तैं कैंड़ो/मानदंड मानिल्या त बोले सक्यांद बल कुछ होणु च। पण, साहित्य छपण से जादा हमथैं यू दिखण चयांद कि बंचनेरूं तैं गढवाळी साहित्य औ भूक कथगा च। कथगा बंचनेर गढवाळी साहित्य अर लिख्नदेरुं छ्वीं गौं गौळौं (समाज) मा लगाणा छन। कथगा बन्चनेर अपण गेड़ीन्‌ गढवाळी साहित्य थैं बरोबर खरीदणा छन? बंचनेरुं
बिज्वाड़/पौध क हिसाबन्‌ त गढवाळी साहित्य मा सुखो इ च। हाँ कवि सम्मेल्नुं बटिन उम्मेद च बल बन्चनेर बौडी सक्दन। असल मा गढ़वाळी साहित्य रच्नेंदारों/रचनाकार मा पैलि बिटेन एक इ कमी राई बल हिंदी का पिछवाड़ी चलण कि अर याँ से हम बंचनेरुं तादात नी बढ़ाई सकवां। फिर एक ह्वेका बि लिख्युं साहित्य फुळणो (वितरण / प्रचार / प्रसार) कबि बि नी ह्व़े। जब कि कवि सम्मेलन / गीत संध्या क बान संगठन काम कर्दन त उखमा सुणदेर/श्रोता छें छन। गढवाळीs हिसाब से साहित्य नि लिख्येण अर साहित्य तैं फुळणो (वितरण) बान एक ह्वेका (संगठनात्मक) कामकाज नि होण से गढवाळी साहित्य हीण हालात मा इ च
वीरेन्द्र पंवार : आप क्या समजदन! गढ़वाळी मा कै बि विधा मा अच्काल काम नि होणु च ?
भीष्म कुकरेती : कविता अर नरेंद्र कठैतऔ च्बोड़ / चखन्यौ छोड़िक कखी बि कुच्छ काम नि होणु च। गढवाळी जन भाषा तैं अग्वाड़ी ल़ाण मा स्वांग(स्टेज या फिल्म या टी वी) भौत जरोरी च पण स्टेजूं मा स्वांग होणा नि छन। फिल्मोंs स्वांग हिंदीs भद्दी गंदी नकल छन कन्ना, याँ से फिल्मों से जथगा फैदा होण चयांद छौ उथगा फैदा नि होणु च।
वीरेन्द्र पंवार : गढ़वाळी मा हौंस-चबोड़ चखन्यौ-म्सगरी (हास्य-व्यंग्य) लिखणो पवाण (शुरुवात ) कख बिटेन लगी अर कबारी ह्व़े छयाई ?
भीष्म कुकरेती : कैपणि बोल च बल उ मनिख नी च जैन हंसण वाळ / चबोड़ / च्ख्नायाऊ / म्सगरी वळी छ्वीं नी लगे होलू। इन्नी ये जग मा क्वी साहित्यकार नी होई जैन हसाण वाळ साहित्य या चबोड़ी साहित्य नी रची होलू। त लिख्युं गढ़वाळी साहित्य मा बि हंसाण वाल/ च्बोड़/ चखन्यौ करण वाळ साहित्य पैली बिटेन छ। हाँ कम जादा को भेद दिखण पोडल। जख तलक पद्य को सवाल च इख्मा हसण खिलण खूब रै अर अबी बि च/ गद्य मा त आजे जमाने पैली गढवाळी कथा "गढवाळी ठाट " हंसोड़ी च्ख्न्यौरी कथा च। सदानंद कुकरेती की 'गढ़वाळी ठाट' कथा आज बि रस्याण लांद। आज बि तज्जी च। भोळ बि यीं कथा मा रस्याण राली अर तज्जी राली। स्वांगूं (नाटक) मा त हौंस, चबोड़, चखन्यौ, मजाक, मस्करी खूब छकै क च। चाहे सन्‌ १९१३ का थपलियालऐ "प्रल्हाद" स्वांग होऊ या आजु २०१० क घ्न्सेला कु "मनखी बाघ" स्वांग हो। हौंस चबोड़ को छळबल़ाट गढवाळी स्वांगूं खूब च। उनत भौतुन च्बोड़ी/ ह्न्स्दारी/ चखन्यौरी लेख लेखिन पण गणतs / मात्रा को हिसाब से लिख्युं साहित्य मा भीष्म कुकरेती अर नरेंद्र कठैत दुयुं नाम जादा च। खबरसार अखबार मा त्रिभुवन क चबोड़ घौण जन चोट कर्दन अर रस्याण वाल हौंस बि च। अर इंटरनेट मा पाराशर गौड़ से जादा चबोड़ गढवाळी मा कैन नि कॉरी।
वीरेंद्र पंवार : गढवाळी साहित्य मा हास्य व्यंग्य को लेखा-जोखा क्या च ?
भीष्म कुकरेती ; यो त लम्बो विषय च भै! सन द्वी हजार तलक को ब्यौरा तुम तैं गढवाळी साहित्य मा हास्य (अबोध बन्धु बहुगुणा अर मेरी छ्वीं) मा मिल जालो। यांका-परान्त/ पैथर मि कुछ समौ उपरान्त जबाब दे द्योलू। उन कवितों मा अच्काल हौंस चबोड़ जादा ही च। स्वांग जु बि २००० क पैथर छपीं उँमा बि चबोड़ चखन्यौ जादा ही च। कथौं क त उनी बि अकाळ च। एक ओमप्रकाश सेमवाळ नाम अर तड़ीयालऔ उपन्यास छोड़िक मैन ख़ास नि देखि।
वीरेंद्र पंवार ; तुमन सन १९८५ परांत गढ़ऐना मा अर होरी बि पत्रों/पत्रिकाओं मा १००० से बिंडी हंसौण्या/चबोड़ी/च्खन्युरया/म्जाक्या (हास्य-व्यंग्य लेख) लेख छापिन। वूं क क्वी संस्करण किले नि छपाई ? गढवाळी साहित्यौ बान आपकू लेख छपण जरोरी छन?
भीष्म कुकरेती : हाँ बनि-बनि पत्रिकाओं/ अख्बरून अर गढ़ऐना मिलैक १२०० से बिंडी लेख त होला ही। पोथी रूप मा लेखुन, कथों संस्‍करण नि आणो पैलू कारण च जन्म जाती अळगस। मि भौत इ अळगसी छौं। मि एक दें लिखणो परांत दिख्दु बि नि छौं क्या ल्याख। फिर मेरी नौकरी बि गौन्त्या बिरती की च (घुम्क्ड्डी) यां से बि गयेळी ह्व़े। मुंबई मा सहित्यौ माहोल नि च एक वजे या बि च। सन्‌ ग्यारा मा जरोर छ्पौल। हैंको कारण च मेरो १९९१ से २००४ तलक साहित्यौ बणवास। अब हैंको साल जरोर छापौल।
वीरेंद्र पंवार ; गढ़वाळी साहित्य मा कार्टून विधा की शुरुव्वत कैन कार अर कने ह्व़े ?
भीष्म कुकरेती : यो बि एक मजाक इ च बल। गढवाळी मा लिख्वारून अर रिख्डाकारुं/चित्र्कारु कमी नि च पण च्बोडया रिख्डाकार (व्यंग्य चित्रकार) गौणि गाणिक द्वी चार इ ह्वेन। गढवाळी मा सबसे पैल चबोड़ी रिख्डा (व्यंग्य चित्र) हिलांस को जुलाई १९८७ मा छप। मतलब गढवाळी मा पैला व्यंग्य चित्रकार छन गढवाळ का शिर्मौरी चित्रकार बर्जमोहन नेगी (बी मोहन नेगी) उनका चबोड्या रिख्डों मा चित्र भौत इ बढिया होंदन। मेरी समज से बी मोहन नेगी क बीसेक व्यंग्य चित्र त छपी होला "खबरसार" अर "गढवाळी धै" अखबार मा उनक एकी चित्र हरेक अंक मा छ्प्दो अर सम्पादक व्यंग्य बदलणा रौंदन बी मोहन नेगी क चित्रों मा वतावरण पर जादा जोर हुन्द। किशोर कदम, रमेश डबराल, डा नन्द किशोर हटवाल, जगेश्वर जोशी, डा नरेंद्र गौनियाल जना विद्‍वानूं गढवाळी मा व्यंग्य चित्र छापिन। संख्या कु हिसाब से म्यार (भीष्म कुकरेती ) चबोडी रिख्डा सबसे बिंडी छन।
वीरेंद्र पंवार : आपन अब तक कथगा व्यंग्य चित्र छपैन ?
भीष्म कुकरेती : नी बि होला त ६०० से जादा व्यंग्य चित्र त आज तलक छपी इ होला।
वीरेंद्र पंवार : अबका अर बीस बरसून्‌ पैलि लिखेण वाळ साहित्य मा क्या फरक चिताणा छ्न्वां ?
भीष्म कुकरेती : कविता, गीतुं अर फिल्मों मा त फरक कुछ हद तलक दिख्यांद च। पण गद्य मा कुछ फरक नी च। कविता मा बि फरक जादा गात को च, सरेल को च। भौण स्टाइल (Body, format, style) को च। अर कवि एक्सपेरिमेंट करण मा अग्वाड़ी आण चाणा छन। कत्ति नई विधा जन गजल, हाइकु, नवाड़ी गीत कविता मा ऐन। पण गद्यात्मक कविता पर जरा जादा इ जोर च। अर जन की गां- गौळ (समाज) मा बादलौ आणु च त कविताओं मा विषय को बदलौ आण इ च। फिर एक भौत बडो फरक जगा को ह्वेई। पैलि दिल्ली गढवाळी साहित्यऔ राजधानी छे। अब देहरादून च। अर कथगा इ उपराजधानी बि छन- पौड़ी, कोटद्वार, गोपेश्वर, श्युन्सी बैज्रों जन अड़गें (क्षेत्र) मा सन्गठनऔ हिसाब से काम हूणु च। या इन बुले सक्यांद गढवाळी साहित्य अब श्हरून बनिस्पत गाऊं मा जादा लिख्याणु च। मतलब अनुभव पर जोर जादा ऐगे। कल्पना से जादा असलियत को जोर ह्व़ेगे। उदारण- खबरसार क ख्ब्रून अर ख्ब्रून छाण-निराळ (न्यूज़ एंड व्व्युज ) मा साफ़ दिखेंद। उन्नी डा नरेंद्र गौनियाल, गिरीश सुंदरियाल, हरीश जुयाल, आपकी कविताओं मा अनुभव कल्पना पर हाव्वी होंद। नरेंद्र कठैत या त्रिभुवन का गद्य मा आजौ समौ दिखेंद त मतलब अनुभव कल्पना पर जादा हाव्वी च। कविताओं मा व्यंग्य जादा च त एकी कारण च। अब अनुभव कल्पना से अग्वाडी छ। अब का कवि मुख्मुल्य्जा नी छ। अब वो चरचरा छन (जादा मुखर ह्व़ेगेन)। व्यंग्य कल्पना को भरवस नी लिखे सक्यांद इख्मा अनुभव/भुग्युं/दिख्युं की भौत जादा ज्रोरात होंद। मतलब अब कविता लोगूँ जादा नजिक ऐगे। कवि एक्सपेरिमेंट जादा करण चाणा छन। अब कवि अन्तराष्ट्रीय परिधि मा आणों बान अतुर्दी च। वो अब गढवाळी भाषा तैं कुवा क मिंढुक नी रखण चांदन. गढवाळी साहित्य मा जनान्युं आण बतांद/ इशारा कर्द बल समाज बदल्याणु च अर गढवाळी भाषा पर जु बि खतरा च वै खतरा तैं टाळणा बान मात्रिश्क्ति की जरोरात च। कविता मा गद्य ब्युंत (गद्यात्मक लय) हावी होणु च त वांको पैथर एक कारण च अच्काल सरा जग मा यि हाळ छन कवियुं कविता मा लय से जादा ध्यान अब कंटेंट पर च। फिर कवि जादा मेनत नी करण चाणा होला? आप कवि छन आप जादा बतै सक्दवां।
वीरेंद्र पंवार : अच्काल कविता जादा लिख्याणि छन आपक क्या बुलण च ?
भीष्म कुकरेती : गढवाळी मा पैलि बिटेन कविता जादा लिख्याणि छन। कविता अर अध्यात्म वलू साहित्य तभी जादा लिख्यांद जब चित्वळ मनिख यू स्म्ज्दो बल समाज फर क्वी भीत/भय/डौर आण वाळ च। यांको मतलब च रचनाकारुं तैं क्वी अणजाणो भय/डौर दिखयाणु च।
वीरेंद्र पंवार : क्या कवि कविता लिखण जादा सोंग सरल समजणा छन ?
भीष्म कुकरेती : मीन याँ पर क्वी छ्वीं कबि कै कवि से नि लगै। मी तैं त कविता लिखण गद्य से जादा कठण लगद। आप कवि छन आप जादा जाणदा ह्वेला। हाँ जु मूड ऐगे। विषय मन मा भीजीगे, शब्द मगज मा आई जावन त कविता लिखण सरल/सोंग च। पण श्ब्दुं क ग्न्ठ्याणऔ बान कवि तैं भौत मेनत मस्कत त करण इ पोडद। आप अपणो इ उदारण ल़े ल्याओ बीच मा आप सेगे छ्या। नेत्र सिंग अस्वाळ को उदारण ल़े ल्याओ। कविता गंठयाणऔ बान कथगा इ मानसिक बिसौंण (पड़ाव) से गुजरण पोडद। एक स्वील पीड़ा क अनुभव से गुजरण पोडद। मन मा एक बौळ ल्ह़ाण पोडद। हाँ जु कविता या गद्य तैं अपण इ मजा क बान लिख्दन उ सैत च घड्यावन/स्वाचन बल कविता गंठयाँण सौंग च सरल च। गढवाळी साहित्य मा लिख्वार आप तैं घपरोळया साहित्यकार क रूप मा जादा जाणदन।
वीरेंद्र पंवार : याँ फर क्या बुलण चैल्य़ा ?
भीष्म कुकरेती : इखम मीन क्या बुलण असल मा आप तैं इ कुछ बुलण चयेंद। खैर बात या च बल मीन द्वी सिंगार/स्तम्भ/कॉलम का नाम से लेख लिखीं "घपरोळ अर खीर मा ल़ूण" द्वी कॉलम मा घपरोळ की गंध आन्द त मीतैं साहित्यकार घपरोळया बुल्दन त क्वी गलत नी च। असल मा जब मि कै बात पर बहस चांदु त सिंगार/स्तम्भ/कॉलम क नाम घपरोळ धैरि लींदु अर जब विषय परिपाटी से कुछ बिगलीं/भिन्न/अलग ह्वाऊ त मि खीर मा ल़ूण नाम ध्री लीन्दु।
वीरेंद्र पंवार : लिख्वार इन बि बुल्दन बल कथगा लिखवारूं तैं आपन गाळी बि देनी ?
भीष्म कुकरेती : हाँ ह्व़े सकद च आप यीं भाषा तैं गाळी मा गणत करी सकदवां। एक चिट्ठी मा "बुलणो को आलोचक" श्री भगवती परसाद नौटियाल पर मीन भगार लगे छे की उनतैं गढवाळी लिखण इ नि आन्द अर अपण मजा क बान जन आदिम हस्तमैथुन करदू उनी नौटियाल जी अपण मजा बान गढवाळी मा आलोचना लिख्दन। मीन इन बि बोली बल नौटियाल हिंदी क जासूस छन जु गढवाळी तैं निपटाण पर अयाँ छन। फिर एक लेख मा मीन बोली की भगवती परसाद नौटियाल हिंदी उपनिवेशवाद क बाईसराय छन। एक चिट्ठी मीन जु भौत स लिख्वारूं खुणि भेज छे उखमा मीन बोली बल गढवाळी सभा का साहित्य कोष क नौटियाल जी गढवाळी शब्दकोष का संयोजक बौणिगेन यानि की "गढवाळ सभा न स्याळ तैं चिनख्यों/बखरों ग्वेर बणे दे। जु लिख्वार आलोचक छौंद गढवाळी शब्दुं हिंदी शब्द इस्तेमाल करू वै पर भगार लगाण मा मी तैं क्वी शर्म नी लगद। मीन प्रूफ दे बल नौटियाल जी अपण लेखुन मा ९९ टका हिंदी शब्द इस्तेमाल कर्दन। आप ये तैं गाळी माणदवां त मीन गाळी दे च। ना त लिखद दें ना इ आज मी तैं क्वी मलाल च की मीन नौटियाल जी क वास्ता इन श्ब्दुं प्रयोग करी जै तैं आप गाळी माणदवां। आलोचक सिर्फ साहित्य औ छाण - निराळी नि करदो बल्कण मा साहित्यकारूं तैं बाटु बि दिखांद। अब जब गुरु इ भेळ जाणु हो त च्यालों क्या होलू ? जख तलक बकै साहित्य्कारून सवाल च मीन व्यक्ति क रूप मा मदन डुकल़ाण पर भगार लगे बल "लोक नाटक विशेषांक मा सम्पादकन्‌ ब्राह्मणवाद चलाई" हमारी चिट्ठी क नाट्य विशेषांक मा सौब लेख बामण लेख्कुं का छन एक बि जजमान या शिल्पकार क लेख नाटक सम्बन्धी नि छ्या। इन्टरनेट पर याँ पर बडो घपरोळ ह्व़े। गढवाल पोस्ट का सम्पादक न त मेखुणि इक तलक बोल बल मि बोल़ेग्‍यौं या मेरी दिमागी हालत ठीक नी च। सम्पादकीय जुम्मेवारी पर बि बहस ह्व़े। अंग्रेजी अख्बरूं सम्वाददाता अर हिंदी अख्बरूं सम्पद्कुं न ईं बहस मा भाग ल़े। कत्ति आम बंचनेरुं न बहस बांचिक हमारी चिठ्ठी पत्रिका मंगाई। डा. दाताराम पुरोहितन्‌ डुक्लाण पर भगार लगे (आलोचना करी) बल ये विशेषांक मा स्वांगु/नाटकुं बाबत भौत सी ब्त्था नी छपेगेन। हमारी चिट्ठी क गढवाळी नाट्य विशेषांक मा डा. राजेश्वर उनियाळन्‌ लेख लिखी थौ। मीन ल्याख बल यू लेख हिंदी की नकल च गढवाळी नात्कुं बारा मा कुछ छें इ नी च। इख पर बि भौत घपरोळ ह्व़े। डा. राजेश्वर उनियाळन्‌ अपणा लेख मा बादी, मिरासी कुं उल्लेख इ नी करी अर लेखी दे बल गढ़वाळ मा नाटकुं शुरुवात रामलीला से ह्व़े। मीन तेज, करकरा, कैडा बचनुं मा राजेश्वर उनियल फर भगार लगै.. काट करी। अब यूँ तेज /कैडा /करकरा बचनुं तैं गाळी माने जाओ त मि क्य करी सकदु ! इन्नी नरेंद्र कठैत की किताब मा एक वाक्य की मीन खूब छांछ छोळी ये वाक्य से इन ल्ग्दो छयो बल जन की उत्तराखंड खबरसार अखबार मा इ गढवाळी व्यंग्य छपी ह्वावन अर याँ से पैलि गढवाळी मा व्यंग्य इ नी छपी होला। इख पर बि खबरसार अर रिजनल रिपोर्टर मा मेरी भौत काट करेगे। मीन बात अग्वाड़ी नी बढाई निथर बहस भौत अगने बि जै सकदी छे। मि नी माणदो मीन नरेंद्र कठैत तैं क्वी गाळी दे होऊ। मीन जु बि इन्टरनेट मा ल्याख उ खबरसार मा छ्प्युं च बांची ल्याओ। कखिम बि गाळी नी छन। अब काट तैं करकरा / कैड़ो बचनों तैं गाळी माने जाओ त मि कुछ नी बोली सकदो। जख तलक अबोध बहुगुणा अर मेरो बोल बचनो सवाल च ओ निपट साहित्य की बहस छे अर ओ सब बहुगुणा जी क किताब "कौंळी किरण" मा छ्प्युं च। गाळी क क्वी बात नी च। हाँ भौत बडो घपरोळ म्यार वात्सायन कु कामसूत्र क इंटरनेट मा अनुवाद से ह्व़े। गढवाळी साहित्य मा इथगा बहस कबि नी ह्व़े ज्थ्गा कामसूत्र को अनुवाद से ह्व़े। तकरीबन पचासेक लोगूँ न इख्मा हिस्सा ल़े होलू। भौत बड़ें बि ह्वेई अर भौत गाळी बि खैन। पण यीं बहस से गढवाळी भाषा कु फैदा इ ह्व़े। लोग चित्वळ ह्वेन बल गढवाळी मा कुछ लिख्याणु च। मीन एक अंग्रेजी मा इन्टरनेट मेल मा लेखी बल रामी बौराणी गीत बंद करे जाण चयेंद त म्यार लेख क विरुद्ध त्याईस लोगुन लेख लिखी उखमा उन्नीस कुमाउनी लिख्वार या बन्च्नेर छ्या। इकम बि गाळी नि छई मीन इंटरनेट मेल मा अंग्रेजी मा लेख ल्याख बल गढवाळी भाषा क नंबर एक दुश्मन हिंदी च त बबाल ही खड़ो ह्व़ेगे। हिंदी क समर्थकन्‌ मेरी काट करी। पण यो बि ठीक बहस छे। याँ से बि गढवाळी भाषा का प्रति लोग चित्वळ ह्वेन। इंटरनेट मेल मा इ मीन पराशर गौड़, विनोद जेठुरी अर जगमोहन जयारा जना गढ़वाळी कवियुं कुण कैडा बचनुं मा बोली बल भै गढ़वाळी शब्द ह्वेका कविता की मुंडळी या कविता मा हिंदी शब्द कुच्याण जरोरी च क्या ? मि नि माणदो मीन कैतैं गाळी दे हो ! जैन छेज तैं लोक गाळी माणना छन वो मेरो हिसाब से ख्चांग च अर में हिंदी प्रेम्युं (जु छौंद गढ़वाळी श्ब्दुं हिंदी शब्द प्रयोग करदन ) पर ख्चांग लगाण चांदो। ये तैं लोक गाळी बुल्दन मि आन्दोलन बोल्दु।
वीरेंद्र पंवार : सन २००७ मा तुम तैं अदित्य्राम नवानी इनाम मील, क्न लग ?
भीष्म कुकरेती : लग त अछू इ च। मीतैं त छ्वाड़ो म्यार घर वालोँ तै अर रिश्तेदारों तैं लग बल मि इथगा सालुं से झक नि मारणो छौ। असल मा मीन प्रसिधीs बान गढवाळी मा नि ल्याख बल्कण मा गढवाळी तैं सजाण बिग्रैली बणाणऔ बान ल्याख। प्रसिधी त मी तै मार्केटिंग का अंग्रेजी लेखुं से जादा मिलदी।
वीरेंद्र पंवार : नवाडी साखी (नयी पीढ़ी) मा गढवाळी साहित्य की हालत से संतुष्ट छ्न्वां क्या ?
भीष्म कुकरेती : जख तलक नवाडी कवियुं बात च त इन लगद बल नया लोग गढ़वाळी मा आणा छन। कुछ नया करणो बान आण चाणा छन। गढवळी कविता मा बुढाण बस्याण खत्म करणो इच्छा नया कवियुं मा दिखयाणि त च पण गद्य मा त सुखो च। नया आणा छन पण क्वी ख़ास उद्देश्य ऊँ मा नि दिख्यांद। जख तलक नया बंचनेरूं सवाल च यो त अखबार आर प्रकाश्कुं सम्पादक प्रकाशक ही बताई सक्दन की नया बन्च्नेरू क्या हाल छन
वीरेंद्र पंवार : ए बगत गडवाळी क लिख्वारून लेखा जोखा ?
भीष्म कुकरेती : भई ! यो सवाल त लम्बो चळण वाळ च। गद्य च, पद्य च , स्वांग च. कविता इतिहास बंचणो होत हमारी चिट्ठी क कविता विशेषांक औ जगवाळ कारो। मीन गढवाळी कविता इतिहास लिख्युं च गद्य पर अब काम करलो। उन इन्टरनेट मा तकरीबन ३००-४०० लेख (कविता समीक्षा अर कवियुं परिचय) मीन छपाई ऐन वां से बि पता चलदो की कविता मा काम हूणो च खबरसार अखबार देखि ल्यो त इन ल्ग्दो गद्य मा बस्याण ही च नरेंद्र कठैत, त्रिभुवन छोड़िक क्वी गद्य मी तैं इन दिख्याई की जै तैं याद करे जौ. ग्र्ह्जाग्र बाँचो त उखमा सौब बासी साहित्य छ्प्दो. मतलब गद्य साहित्य मा सुखो च।

वीरेंद्र पंवार : तुमन गढ़वाळी लिखवारूं कुण मोबइल से एसेमेस भ्याज बल अपण साहित्य इन्टरनेट मा छापो। अर फोन पर बि हिदायत दीण रौंदवां बल इंटरनेट मा साहित्य छापो। इंटरनेट से गढवाळी साहित्य तैं कथगा फैदा होलू ?
भीष्म कुकरेती : हाँ ! मि जैक बि दगड छ्वीं ल्गान्दो मेरी सल्ला रौंदी बल इन्टरनेट मा गढवाली साहित्य छपवाओ। इंटरनेट एक नयो माध्यम च इख्मा गढवाळी साहित्य छपण चएंद। गढवाळी साहित्य हेरेक माध्यम मा छपणि चएंद की ऩा? इंटरनेट माध्यम एक बडो माध्यम च जखमा साहित्य वितरण की समस्या नी च। जगमोहन जयारा, पराशर गौड़ जन कवियुं तैं आज सरा संसार मा गढवाळी जाणदन त इंटरनेट का बदोलत। धनेश कोठारी, विनोद जेठुरी क ब्लॉग लोक बांचण मिसेगेन। विजय कुमार अर वीणापाणी जोशी तैं बि कुछ लोक पछ्याण मिसेगेन। जख अख्बरून अर किताबुन वितरण कर्दा-कर्दा प्र्काश्कुं टकटूटी जांद वख इन्टरनेट से एक सेकंड मा बात इखं उख पौंची जांद फिर प्रतिक्रिया बि चौड़ मिली जांद। पराशर गौड़ का क्थ्गा इ कविताओं फर दसेक पाठकों से प्रतिक्रिया आई जान्दन। इंटरनेट से बंचनेरूं दगड छ्वीं (सम्वाद) भौत सरल सौंग च जु ऑफलाइन माध्यम मा नी ह्व़े सकद मेलिंग ग्रुप मा साहित्य भीजे जांद अर जैन बांचणाइ वु बांची लेन्दो। साहित्य उपलब्ध होऊ त ही लोक बांचल की ऩा? इनि वेबसाईंटूं मा छ्प्युं साहित्य तैं बन्चनेर जब चाहे तब बांची सकद। गढवाळी साहित्य तैं इन्टरनेट से जादा इ फैदा च किलैकि सहित्यौ वितरण समस्या को हल मिलीगे।
वीरेंद्र पंवार : इंटरनेट मा गढवाल्यूं तादाद भौत कम च याने पाठक सीमित च त ..?
भीष्म कुकरेती : त ऑफलाइन मा आप तैं कौं से बिंडी पाठक मिल्दन ? उत्तराखंडी मेलिंग रूप मा पाँच छे हजार सदस्य छन सौ बि बन्चनेर बौ नी गेत समजी काम ह्व़ेगे फिर वेबसाईट मा लगातार पाठक मिलदा इ रौंदन। इन्टरनेट का पाठक जादा सजग अर काम कु बि छन
वीरेन्द्र : इंटरनेट से गढवाळी साहित्य तैं क्थ्गा भलु होलू ?
भीष्म कुकरेती : भै नयो माध्यम च ज्थ्गा बि पाठक मिलल़ा त भलो ही होलू। चलो इन्टरनेट तैं बोनस समजी ल्यो फिर बि फैदा इ च। मै तैं त बहुत फ़ायदा ह्व़े। लोक मेरी बात समजणा छना म्यार दगड गढ़वाळी भाषा विकास, रक्षा बाबत छ्वीं (interaction) लगाणा रौंदन जु ऑफलाइन माध्यम मा नी ह्व़े सक्दो।
वीरेंद्र पंवार ; तुम तैं विश्व साहित्य की जानकारी च पण इंटरनेट मा क्थ्गा इ विसयुं पर घपरोल्य़ा बात उठै लीन्द्वां। वां से जादा तुम गढ़वाळी पर फॉक्स करो त गढ़वाळी को फैदा होलू।
भीष्म कुकरेती : उन त जादातर विषय भाषा सम्बन्धी ही होंदन (जै तै तुम घपरोल्या विषय बुल ऩा छ्न्वां)। भाषा पर क्थ्गा इ बहस की पवाण मिन इ लगें। जब मीन गढवाळी व्यंजन गढवाळी मा लेख त लोकुं तैं बांचण इ पोड। इनि आवा गढवाळी सिकला तैं पाठक पढ़णा छन। पण लिख्वार सामजिक मनिख बि होंद त सामजिक जुम्मेवारी बि निभाण जरोरी च। में अंग्रेजी मा व्यंग बि लिख्दु त उख पर बि बहस ह्व़ेजांद। हाँ या बात सै च मेरा अंग्रेजी व्यंग्य क्वी इन व्यंग्य नी होलू जै पर बहस नी होऊ। पर लिखण मेरो ढब च बौळ च।
वीरेन्द्र पंवार : तुम गढवाळी साहित्यकारुं तैं समजाणा छ्न्वां। धै लगणा छ्न्वां बल इंटरनेट मा अपणो साहित्य छपाओ। इंटरनेट से गढवाळी भाषा तैं क्य फ़ायदा ?
भीष्म कुकरेती : म्यार अनुभव से भौत फ़ायदा छन। जन कि ईमेल ग्रुपिंग, ग्रुप एमैलिंग से आप अपणि बात गढवाळी मा ब्लॉग सदस्यों तलक पौंछे सक्दवां। तकरीबन उत्तराखंडी ग्रुप मा ६०००/७००० सदस्य होला। आप सबि ग्रुप का सदस्य बौणो अर गढवाळी साहित्य भ्याजो। सौ बि आपको साहित्य बांचल त भौत ह्व़ेगे।
वीरेंद्र पंवार : आप साहित्य मा रस/रूचि ल़ीण वल़ा बंचनेरूं/पाठ्कुं ग्रुप बणऐ स्क्द्वान अर ऊँ तैं गढवाळी साहित्य रोज भेजी सकदवां.
भीष्म कुकरेती : आप तैं यूँ ग्रुपुं सदस्यों से चौड़ प्रतिक्रिया मिली जांदी अर आप जाणि जैल्या बल बंचनेरूं रूचि क्या च। मेरो इन्टरनेट का बदोलत भौत सा साहित्यकारुं (हिंदी, अंगरेजी, गढवाळी, कुमौनी) दगड सम्पर्क ह्व़े अर हम भौत तरां कि साहित्यिक छ्वीं लागौन्दा। इन्नी साहित्य्कारून सम्बधित ग्रुप बणैक रन्त रैबार भीजे सक्यांद। साहित्य कु अदला-बदली ह्व़े सकद जु ऑफलाइन मा सम्भव नि च। आप अपणो साहित्य बगैर परेशानी क उत्तराखंडी वेब साईट मा छपै सक्दां। जु ऑफलाइन माध्यम मा सॉंग सरल नी च। आप अपणो ब्लॉग बणावो अर उख्म्मा साहित्य छपवाओ अर पाठ्कुं/बंचनेरूं दगड सम्पर्क बढ़ाई सक्दन। गढवाळी पत्रिका बि इन्टरनेट से छपी सकदी च। इन्टरनेट से आप गढवाळी साहित्य तैं जख बि गढवाळी छन पौंचे सकदवां हाँ विषय जरा काम को हूँण च्यान्द। जनकि मेरो गढवाळी मा लिख्युं गढ़वाली व्यंजन लेखमाला तैं ऊन बि बांच/पौढ़ जौं तै गढवाळी नि औंदी छे/ कत्युन प्रतिक्रिया गढवाळी मा भ्याज। याँसे पैल ऊं लोकुन गढवाळी मा कबि बि नि लिखी छौ। इंटरनेट मा छ्प्युं विषय स्द्यानी कुणि कखी ना कखि जिन्दा रौंद पाठक अपणो औ सुविधा हिसाब से साहित्य बांची सकद।
वीरेंद्र पंवार : आप पर जादातर साहित्यकार भगार ल्गान्दन बल आप इन्टरनेट मा गढवाळी भाषा साहित्य औ छ्वीं हिंदी या गढ़वाळी छोड़िक अंग्रेजी मा करदवां ?
भीष्म कुकरेती : हाँ मि गढवाळी की बात हिंदी मा कतई नि करदों। पण इन बि नी च बल मि गढवाळी छ्वीं गढवाळी मा नी करदो हों। मि इन जरोर दिख्दु बल मेरो इन्टरनेट का पाठक कु छन। उत्तराखंड तैं छोड़िक जु बि भैराक पाठक इन्टरनेट पर छन वु अंग्रेजी मा बांचणो/पढणो ढब्याँ छन। मेरो पैलो मकसद छयो बल यूँ प्रवाश्युं तैं गढवाळी साहित्य/भाषा औ बार मा मालूमात दिए जाऊ। त अंग्रेजी इ इन भाषा च जु फैदाम्न्द च। जौं तैं गढ़वाळी नी औंदी/जौं तै गढवाळी भाषा/साहित्य की जानकारी नी च ऊंथैं ध्यान मा रौखिक मीन अंग्रेजी भाषा औ सारा ल़े। मेरो टार्गेट ही उ छ्या जु अंग्रेजी जाणदन पण गढवाळी भासा बार म अणजाण छन जख तक जौं तैं हिंदी जादा औंदी या अंग्रेजी ठीक से नी औंदी वो जादातर गढ़वाळी भाषा बारा मा जाणदा छन। दुसर कम्प्यूटर मा अंग्रेजी मा लिखण सरल बि च। फिर मेरो उद्देश्य गढ़वाळी भाषाs बार मा ग्यान दुनिया का हौरी भाषाई लोकुं तक बि पौंछाणो च। इलै मि इन्टरनेट मा गढवाळी साहित्य बार मा अंग्रेजी मा लिखदों। जां से भारत से भीतर का लोकुं तैं बि गढवाळी साहित्या बार मा मालुमात ह्व़े जाऊ।
वीरेंद्र पंवार : आपन इंटरनेट मा अंग्रेजी भाषा मा गढ़वाळी साहित्य सम्बन्धी साहित्य क्या ल्याख ?
भीष्म कुकरेती : मेलिंग मा त भौत कुछ अपणा विचार भेजिन। हाँ वेबसाईट मा मीन गढ़वाळी कवि अर गढ़वाळी कविताओं बार मा जादा लिखी।
वीरेंद्र पंवार : जन की ?
भीष्म कुकरेती : मीन पिछ्तर से बिंडी कविता किताबुं समीक्षा वेबसाईटु मा छाप या इन बोली सक्दों जो बि गढवाळी कविता किताब मीम छै मिन हरेक किताब की समीक्षा अंग्रेजी मा वेबसाईट मा छाप। इनि द्वी सौ से बिंडी कवियुं बार मा जीवनी अर उंको साहित्यिक विवरण वेबसाईटउं मा छाप। इनि लोक गीतुं समीक्षा बि छापिन। लोक कहावतों बारा मा बि जानकारी वेबसैट मा छाप। सैद च चार सौ से जादा लेख छपीगे होला।
वीरेंद्र पंवार ; तुम जब कै कवि की समीक्षा कर्द्वान त वै कवि की तुलना दुसर मुल्कों साहित्य्कारून दगड करदवां। इन किले ?
भीष्म कुकरेती : हाँ जु कवि या वेकी कविता उन/विशेष ह्वाऊ त मि कवि/कविताओं तुलना भैर देसूं कवियुं/कविताओं दगड करदों। वजे साफ़ च मि दुन्य तैं बताण चांदो बल गढवाळी मा बि अन्तराष्ट्रीय भाषा बणणों पुन्यात च, स्क्यात च।
वीरेंद्र पंवार : तुम गद्यकार छ्न्वां पण समीक्षा कविता की ही कार ?
भीष्म कुकरेती : इकु बात च ज़रा कविता इतिहास पुरो ह्व़े जावू त गद्य पर काम करलो। अबी गढवाळी कवितायौ इतहास को काम बाकी च। यू इतिहास पुरु ह्व़ेजालो त फिर गद्य औ बार मा छाप्लो।

वार्ताकार- वीरेंद्र पंवार, पौड़ी

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