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Showing posts from 2010

चौंठी भुक्कि

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छौं मि ये ही मुल्क कु, भुलिग्यों यख कि माया भुलिग्यों वा चौंठी भुक्कि, कोख जैंन मि खिलाया कन नचदा रांसौं मण्डाण, चड़दा कन युं ऊंचा डांडौं क्या च कौंणि कंडाळी कु स्वाद, हिसर खिलदा कन बीच कांडौं भुलिग्यों दानों कु मान, सेवा पैलगु शिमान्या कैन बंटाई पुंगड़्यों कि धाण, द्याई कैन गौं मेळ्वाक कख च बगणि धौळी गंगा, गैन कख सी काख कांद याद नि च रिंगदा घट्ट, चुलखांदों कि आग खर्याया रुड़्यों धर मा फफरांदी पौन, ह्‍युंदै कि निवाति कुणेटी मौ कि पंचमी, भैला बग्वाळ्, दंग-दंगि सि पैडुल्या सिलोटी बणिग्यों मि इत्यास अफ्वू मा, बगदिग्यों थमण नि पाया Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems) Copyright@ Dhanesh Kothari

दारु

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दारु ! पगळीं च बगणि च डांडी कांठ्यों धरु-धरु पीड़ बिसरौण कु माथमि, द्यब्तौं सि सारु गंगा उंद बगदी दारु उबां-उबां टपदी पैलि अंज्वाळ् अदुड़ि/ फेर, पव्वा सेर जै नि खपदी हे राम! दअ बिचारु गबळान्दि बाच ढगड्यांदि खुट्टी अंगोठा का मुखारा अंग्रेजी फुकदी गिच्ची कुठार रीता शरेल् पीता ठुंगार मा लोण कु गारु पौंणै बरात मड़्वयों कु सात बग्त कि बात दारु नि हात त क्य च औकात छौंदि मा कु खारु नाज मैंगु काज मैंगु आज मैंगु रिवाज मैंगु दारु बोदा त दअ बै क्य च फारु Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems) Copyright@ Dhanesh Kothari

सौदेर

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माया का सौदेर छां हम इन्कलाब जिन्दाबाद बैर्यों बग्तौ चेति जावा निथर होण मुर्दाबाद कथगै अंधेरू होलु हम उज्याळु कैद्योंला भाना कि बिंदुलि मा गैणौं तैं सजै द्योंला हम सणि अळ्झाण कु कत्तै करा न घेरबाड़ हत्तकड़ी मा जकड़ि पकड़ी जेल भेजा चा डरा बणिगेन हथगुळी मुट्ट इंतजार अब जरा लांकि मा च प्रण प्रण लौटा छोड़ा हमरी धद्द क्रांतिकारी भौंण गुंजणी हिमाला कु सजायुं ताज मौळ्यार कि टक्क धरिं च घाम बि जग्वाळ् आज हम सणिं बिराण कु जम्मै न कर्यान् उछ्याद Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems) Copyright@ Dhanesh Kothari

फेक्वाळ्

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भुयां खुट्ट धन्नौ जगा नि अंरोंगु कखि छोड़युं नि संगति फैल्यान् सेमा सि फेक्वाळ् धुर्पळा कि पठाळी उठा चौक का तीर जा तिबारि मा ह्‌यूंदौ घाम तपदु रात्यों हुंगरा लगान्द देखा खालि जांद्रा घुमौन्दु बांजा घट्टुं भग्वाड़ि मंगदु खर्ड़ी डाल्यों छैल घाम तपदु रीता उर्ख्याळौं कुटद गंज्याळु सी देखा चम्म सुलार कुर्ता ट्वपली मा मंगत्यों कि टोल बर्खदा बसग्याळ् छुमछ्योंदा अकाळ् दिल्ली का दिलन् देरादुण कु पैसा लुटौंदु देखा संगति फैल्यान्... Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems) Copyright@ Dhanesh Kothari

कौन डरता है खंडूरीराज से ?

क्या भविष्य में भी भारतीय जनता पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल भुवनचंद्र खंडूरी के नेतृत्व में दुबारा चुनाव के मैदान में कुद सकेगी ? बाबा रामदेव के दो करोड़ की रिश्वत के खुलासे के बाद शायद यह सवाल उत्तराखण्ड के बहुत से लोगों को मथ रहा होगा।   हालांकि अभी किसी के नाम का खुलासा नहीं हुआ है। हो सकता है कि समय रहते कंट्रोलरों के द्वारा सब कुछ नेपथ्य में धकेल दिया जाय और खुलासे का बुलबुला फूटने से पहले ही सिकुड़ जाये। यहां सवाल यह भी उभरकर सामने आता है कि आखिर खंडूरी राज से किसे डर लगता है। उत्तराखण्ड राज्य के वर्तमान विपक्ष को , पार्टी के ही कुछ सहयोगियों को , नौकरशाहों को , माफिया तंत्र को या फिर बाबा रामदेव को जो अब अपनी राजनीतिक पारी को शुरू करने की जमीन बनाने लगे हैं।   अतीत में इसका कुछ अहसास मिल जायेगा। जब फ्लैश बैक में जाकर उस दिन को देखा जाय , जब खंडूरी राज की विदाई के बाद तत्कालीन ‘ डरे हुए लोगों की भीड़

सिखै

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सि हमरा बीच बजार दुकानि खोली भैजी अर भुला ब्वन्न सिखीगेन मि देळी भैर जैकि भैजी अर भुला ब्वन्न मा शर्माणूं सिखीग्यों Copyright@ Dhanesh Kothari

पण कब तलक

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मेरा बिजाल्यां बीज अंगर्ला सार-खार मेरि भम्मकली गोसी कबि मेरु भुक्कि नि जालू कोठार, दबलौं कि टुटलि टक्क पण, कब तलक मेरा जंगळूं का बाघ अपणा बोंण राला मेरा गोठ्यार का गोरु बाखरा उजाड़ जैकि गेड़ बांधी गाळी ल्याला दूद्याळ् थोरी रांभी कि पिताली ज्यू पिजण तक पण, कब तलक मेरा देशूं लखायां फिर बौडिक आला पुंगड़्यों मा मिस्यां डुट्याळ फंड्डु लौटी जाला पिठी कू बिठ्गु मुंड मा कू भारू कम ह्वै जालु कुछ हद तक पण, कब तलक Copyright@ Dhanesh Kothari Photo source- Mera pahad

बाघ

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बाघ   गौं मा     जंगळुं मा मनखि    ढुक्यां छन रात - दिन  डन्ना छन घौर - बौण द्‌वी    लुछणान्‌ एक हैंका से आज - भोळ     अपणा घौरूं मा ज्यूंद रौण कू संघर्ष    आखिर कब तक चाटणा , मौळौणा रौला अपणा घौ      क्य ह्‍वे सकुलु कबि पंचैती फैसला केरधार का वास्ता       या मनख्यात जागली कबि कि पुनर्स्थापित करद्‍यां वे जंगळुं मा    Copyright@ Dhanesh Kothari

बोये जाते हैं बेटे/और उग आती हैं बेटियां

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क्यों अच्छी नहीं लगती बेटी

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बोलना चाहती है औरत

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काव्य आन्दोलनों का युग १९७६- से २०१० तक

सन १९७६ से २०१० तक भारत को कई नए माध्यम मिले और इन माध्यमों ने गढ़वाली कविता को कई तरह से प्रभावित किया। यदि टेलीविजन / ऑडियो वीडियो कैसेट माध्यम ने रामलीला व नाटको के प्रति जनता में रूचि कम की तो साथ ही आम गढ़वाली को ऑडियो व वीडियो माध्यम भी मिला। जिससे गढ़वाली ललित साहित्य को प्रचुर मात्र में प्रमुखता मिली। माध्यमों की दृष्टि से टेलीविजन , ऑडियो , वीडियो , फिल्म व इन्टरनेट जैसे नये माध्यम गढ़वाली साहित्य को उपलब्ध हुए। और सभी माध्यमों ने कविता साहित्य को ही अधिक गति प्रदान की। सामाजिक दृष्टि से भारत में इमरजेंसी , जनता सरकार , अमिताभ बच्चन की व्यक्तिवादी - क्रन्तिकारी छवि , खंडित समाज में व्यक्ति पूजा वृद्धि , समाज द्वारा अनाचार , भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति ; गढ़वालियों द्वारा अंतरजातीय विवाहों को सामाजिक स्वीकृति , प्रवासियों द्वारा प्रवास में ही रहने की ( लाचारियुक्त ?) वृति और गढ़वाल से युवा प्रवासियों की अनिच्छा , कई तरह के मोहभंग , संयुक्त परिवारों का सर्वथा टूटना , प्राचीन सहकारिता व्यवस्था का औचित्य समाप्त होना , ग्रामीण व्यवस्था पर शहरीकरण का छा जाना ; गढ़वालियों द्वारा व