आखिर क्या मुहं दिखाएंगे ?



किचन में टोकरी पर आराम से पैर पसारे छोटे से टमाटर को मैं ऐसे निहार रहा था, जैसे वो शो-केस में रखा हो। मैं आतुर था कि उसे लपक लूं। इतने में ही बीबी ने कहा- अरे! क्या कर रहे हो, ये एक ही तो बचा है। कोई आ ही गया तो क्या मुहं दिखाएंगे? आजकल किचन में टमाटर होना प्रेस्टीज इश्यू हो गया है। पूरे 100 रुपये किलो हैं।
तब क्या था, मैंने टमाटर की तरफ से मुहं फेरा और चुपचाप प्याज से ही काम चलाने की सोची। दरअसल मैं अपनी भाजीको टमाटर के तड़के के बिना खाने का मोह नहीं त्याग पा रहा था।
मित्रों भोजन! साहित्य पर नजर डालें तो वैदिककाल में टमाटर का उल्लेख शायद ही किसी ने किया हो। हां गुजराती के प्रसिद्ध व्यंग्यकार विनोद भट्ट जी ने जरुर ये खोजकर लिखा कि- महाभारत में विधुर जी के घर भगवान श्रीकृष्ण को शाक-भाजी नहीं, अपितु मशरूम की खीर परोसी गई थी। रामायण को लें तो यहां भी शबरी के बेर के अलावा तुलसीदास जी ने अन्य व्यंजनों पर मौन ही साधा है।  
तो मैं भी इसके बिना मौन साध लेता हूं।

गोल गोल ये लाल टमाटर
कहां से लाएं लाल टमाटर
बीबी बोली लाए टमाटर
हम बोले क्यों लाएं टमाटर
पूरे 100 का भाव चढ़ा है
मंडी में अकड़ा सा पड़ा है
छू लेने पर बोला भईया
मत छेड़ो यार लाल टमाटर

लेने है तो बात करो
समय यूं ना बरबाद करो
मैंने कातर नजरों से देखा-
फूल रहा था लाल टमाटर
मुड़कर देखा बार-बार तो
आंख दिखाता लाल टमाटर

लेख- प्रबोध उनियाल

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