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... जिसकी जागर सुन, बरस जाते हैं बादल

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उत्तराखंड   को लोक और उसकी संस्‍कृति अपनी आगोश में अब भी काफी कुछ अनकहा, अनछुए पहलुओं को छुपाए हुए है. इन्‍हीं पहलुओं में एक है जागर गायन की विधा. देव आह्वान के स्‍वरूप जागरों में इतनी दिव्‍य शक्ति है, कि वह बादलों का रूख मोड़कर उन्‍हें बरसने तक को मजबूर कर सकते हैं. इसी चमत्‍कार का अनोखे साधक हैं जोशीमठ विकास खंड के गैणूलाल. जिन्‍हें दुनिया तो अब तक नहीं जान सकी. मगर जिन्‍होंने उन्‍हें प्रत्‍यक्ष सुना, वह कभी गैणूलाल को भूला भी नहीं पाएंगे. सन् 1946 में जब देशभर में आजादी की महक फिजाओं में तैरने लगी थी. भारतवासी बेसब्री से आजादी के इस्‍तकबाल को तैयार हो रहे थे. इसी दरमियां उत्‍तराखंड के सीमांत जनपद   चमोली के जोशीमठ बलॉक अंतर्गत टंगणी मल्ला गांव में असुज्या देवी और असुज्या   लाल के घर पहले बेटे के रूप में गैणूलाल का जन्म हुआ. पीढ़ियों से इनका परिवार जागर विधा की पहचान रहा है. समूचे पैन्खंडा से लेकर दशोली ,   नागपुर मल्ला ,   बधाण   समेत कई परगनों में इस परिवार के जागरों की धूम हुआ   करती थी. या यों कहें कि अलकनंदा से लेकर बिरही ,   नन्दाकिनी   और पिंडरघाटी के भूभाग में बसे गांव