दुनियावी नजरों से दूर, वह 'चिपको' का 'सारथी'
दुनिया को पेड़ों की सुरक्षा के लिए 'चिपको' का अनोखा मंत्र देने और पर्यावरण की अलख जगाने वाले 'चिपको आंदोलन' के 42 साल पूरे हो गए हैं। इस आंदोलन की सबसे बड़ी 'यूएसपी' थी, पर्वतीय महिलाओं की जीवटता और निडरपन। मात्रशक्ति ने समूची दुनिया को बता दिया था, कि यदि वह ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस आंदोलन को अपने मुकाम तक पहुंचाने में चिपको नेत्री गौरा देवी, बाली देवी और रैणी- रिगड़ी गांव की महिला मंगल दल सदस्यों समेत धौलीगंगा घाटी के दर्जनों गांवों के लोगों का उल्लेखनीय योगदान रहा। साथ ही चिपको नेता चंडी प्रसाद भट्ट, हयात सिंह बिष्ट, वासुवानंद नौटियाल आदि अनेकों लोगों ने आंदोलन में कामयाब भूमिका अदा की। समूचा विश्व चिपको आंदोलन की कामयाबी से अचंभित रहा और आज भी है। मगर, इस सबके बीच जिस व्यक्ति की बदौलत आज चिपको आंदोलन विश्व मानचित्र पर अपनी ध्वजा को लहराए हुए है। वह 'सारथी' दुनिया की नजरों से हमेशा दूर ही रहा। बिलकुल हम बात कर रहे हैं, कॉमरेड गोविंद सिंह रावत की। जिनको जाने बिना चिपको आंदोलन की गौरवगाथा