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Showing posts from January, 2014

लोकल 'पप्पू' भी सांसत में

     वर्षों से कोई 'पप्पू' पुकारता रहा , तो बुरा नहीं लगा। मगर अब उन्हीं लोगों को 'पप्पू' का अखरना , समझ नहीं आ रहा। भई क्या हुआ कि 'पप्पू' अभी तक फेल हो रहा है। यह कुंभ का मेला तो है नहीं कि बारह साल में एक बार आएगा। हर साल कहीं न कहीं यह परीक्षा (विधानसभा , पंचायत , निकाय चुनाव) तो होगी ही , तब राष्ट्रीय न सही लोकल 'पप्पू' तो पास हो जाएगा। रही बात हाल में 'पप्पू' के पास न होने की , तो इससे मैं भी आहत हूं। एक राष्ट्रीय पप्पू ने लोकल पप्पूओं की वाट जो लगा दी है। अब देखो , सब हर फील्ड में पप्पू होने का मतलब नाकामी से जोड़ रहे हैं। ऑक्सफोर्ड वाले भी सोच रहे हैं कि 'पप्पू' को फेल का पर्यायवाची बना दिया जाए। देश में अब मां-दे लाडलों को भी दुत्कार में 'पप्पू' नहीं कहा जा रहा। मांएं भी जाने क्यूं इस नाम से खौफजदा हैं। शायद उन्हें भी लग रहा है , कि कहीं प्यार-दुलार के चक्कर में बेटे की नियति भी 'पप्पू' न हो जाए।       'बाजार' हर साल कैडबरी बेचते हुए इसी उम्मीद में जीता है , आस लगाए रहता है कि 'पप्पू' पास होगा

ये चन्द ..बहुमत पर भारी

लोग कह रहे हैं की इतना ईमानदार था तो कोटद्वार से मुछ्याल क्यूँ हारा ...बात ये है की खुद में ईमानदारी भी कोई चीज होती है ..भाजपा जैसी पार्टी में ईमानदार मुच्छ्याल का होना भी एक निशानी है की अगर कोई और होता तो उत्तराखण्ड को कितना उधेड़ देता ..क्यूँ की मुच्छ्याल के सीएम होते हुए मैं भी सत्ता के उन दलालों की करतूतों में पिसा ..तो इतना अन्दाजा तो लग ही गया की उत्तराखण्ड का भाग्य देहरादून बैठ कर भी नहीं ... लिखा जा रहा है ..इसकी एक एक ईबादत दिल्ली से लिखी जा रही है .... जिस "आनन्द" के साथ "सारंगी" का जो संगीत यहाँ बजा ....जिस तरह मेरे सामने विधायकों और मंत्रियों से जनहित के कामों में ( निजी नहीं ) पेश आये उसने साबित कर दिया की ये डोर मुच्छ्याल बौडा के हाथ में नहीं है ...उसके बाद सत्ता की उठक पठक ने साबित कर दिया की हमारे जनप्रतिनिधि या तो वाकई इतने सीधे हैं की वे दिल्ली वालों को अपनी बात नहीं मनवा पाते . या .........मैं ये नहीं कह सकता की भगत दा.. प्रकाश पन्त ..मुन्ना सिंह चौहान जैसे विधायकों को पहाड़ का दर्द नहीं है . और वो इसे बदलने के लिए कार्य नहीं कर रहे हैं ...

अभी से बनाएं अपना मैनेफेस्‍टो

अगर कोई ऊंच नीच न हुई तो उत्‍तराखंड राज्‍य में अगला विधानसभा चुनाव 2017 में होगा। निश्चित ही तब सभी राजनीतिक दल कमर कस कर राज्‍यस्‍तरीय मैनेफेस्‍टो तैयार करेंगे। मगर , मेरा मानना है कि मैनेफेस्‍टो की तैयारी अभी से शुरू हो जानी चाहिए , वह भी विधानसभावार। ताकि यदि कोई ठोस एजेंडा , प्रस्‍ताव , योजना का खाका पहले ही वजूद में आए तो इसे सरकार के सामने मांग के रुप में भी रखा जा सकता है , और यह मंजूर नहीं भी हुआ तो चुनाव पूर्व इस पर राजनीतिक दलों से अपनी नीति स्‍पष्‍ट करने को भी कहा जा सकता है , या फिर किसी समर्थन करने वाले दल के नीतिपत्र में इन्‍हें शामिल कराया जा सकता है। लिहाजा मेरा मानना है कि प्रत्‍येक विधानसभा वार मैनेफेस्‍टो तैयार करने में जुट जाएं , अपने क्षेत्र की जरुरतों जो व्‍यक्तिगत नहीं बल्कि सार्वभौमिक हों को सामने रखें। इसकी शुरूआत ऋषिकेश विधानसभा से हो तो अच्‍छी बात है... ऋषिकेश के सभी बुद्धिजीवी मित्र मैनेफेस्‍टो को बनाने में मदद करें.. आपको क्‍या लगता है कि यहां जनहित के लिए किन योजनाओं को और किस तरह से क्रियान्वित कराया जा सकता है।