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उफ्फ ये बांधों की हवस- 2

‌‍महीपाल सिंह नेगी वाया ऊर्जा प्रदेश , उत्तराखंड की विकृत होने वाली तस्वीर को वाया यहां के रचनाशील समाज की नजर से देखा जा सकता है। छह साल पहले टिहरी बांध से बिजली पैदा होते ही योजनाकारों और राजनेताओं ने तालियां बजाई थीं। ठीक इसी दौरान टिहरी डूबने की त्रासदी पर भागीरथी घाटी में हिंदी व गढ़वाली में जिन अनेकों गीतों/कविताओं की रचना हुई , वे कई सवाल उठाती चली गईं। टिहरी शहर की ओर तेजी से पानी भरने-बढऩे लगा तो शायर इसरार फारूखी ने लिखा- बंधे बांध , बंधे , चले , चले न चले , गंगा कसम तू निकल जा तले-तले। उत्तराखंड में गढ़वाली के सबसे बड़े गीतकार नरेंद्रसिंह नेगी तो 1980 के दशक में ही लिख चुके थे - समझैदे अपिडि सरकार द्वी चार दिन ठैरि जावा बुझेण द्या यूं दानि आंख्‍यूं बूढ़ बुढ्यउं सणि मन्‍न द्यावा ज्‍यूंदि आंख्‍यूंन कनक्‍वै द्यखण परलै कि तस्‍वीर अर्थात ” अपनी सरकार को समझा दो , वह दो-चार दिन रुक जाये । इन बुजुर्ग आंखों को बंद होने दो और वृद्ध जनों को मरने दो। आखिर जिंदा आंखों से टिहरी डूबने के प्रलय को कैसे देख सकेंगे। इस गीत में टिहरी डूबने के दृश्य को ‘ प्रलय ’

उफ्फ ये बांधों की हवस

‌‍महीपाल सिंह नेगी पहले एक बड़ी खबर , जो अब तक मीडिया में नहीं आई है। टिहरी बांध की झील के ऊपरी क्षेत्र में बसे करीब एक दर्जन और गांव कभी भी खिसककर झील में समा सकते हैं। इन गांवों में रहने वाले 1, 336 परिवारों को दूसरी जगह बसाने ( पुनर्वासित करने) की सिफारिश भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने की है। उत्तराखंड की सरकार ने भारत सरकार से इन गांवों व परिवारों को पुनर्वासित करने के लिए 522 करोड़ 84 लाख रु. मांगे हैं। भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट के आधार पर ही बांध से आंशिक रूप से प्रभावित तीन गांवों को पहले ही पूर्ण प्रभावित में बदलना पड़ा है। इनके पुनर्वास के लिए करीब एक सौ करोड़ रु. भारत सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर जारी करने पड़े हैं। यह तस्वीर भयावह है। बांध की झील के ऊपर बसे वे क्षेत्र और उन पर बसे गांव भी खिसक रहे हैं , जिन्हें बांध की प्रारंभिक भूगर्भीय अध्ययन रिपोर्ट में पूरी तरह स्थिर बताया गया था। 1980 व 1990 के दशक में टिहरी बांध विरोधियों ने जब इन क्षेत्रों की स्थिरता पर प्रश्न खड़े किए , ( केंद्र सरकार की ही ‘ भुंबला कमेटी ’ नाम से चर्चित पर्यावरणीय स