जायें तो जायें कहां
जिस जंगल के रिश्ते से आदि - मानव अपनी गाथा लिखते आया है , वो जंगल आज उदास है . उसके अपने ही रैन - बसेरे से आज वन्य - जीव आबादी की ओर तेजी से रुख करने लगे हैं . वो खाली है , दरसल उसने हमसे जितना लिया उससे ज्यादा हमें लौटा दिया . लेन - देन के इस रिश्ते में हम आज उसे धोखा दिये जा रहे है , हमें आज भी उससे सब कुछ की उम्मीद है लेकिन हाशिल जब हमने ही सिफ़र कर दिया हो तो जंगल बेचारा क्या करे -? हाथी हो या गुलदार वो जंगल से निकल कर आबादी की ओर क्यों बढ रहा है , ये एक बडा सवाल है . और अब ये सवाल बेहद जज्बाती और जरुरी भी हो गया है कि हम सोचे कि इतने बडे तंत्र के बावजूद हम कहां चूक कर रहे है ? पिछ्ले पखवाडे हाथी और गुलदार के आतंक की खबरें सुर्खियों में रहीं . हाथी सडक पर आदमी को पांव से कुचल रहा है तो गुलदार शाम ढलते ही बच्चों को निवाला बना रहा है . लेकिन ये उसकी चूक और भूख हो सकती है , जब जंगल मे पानी और चारा नहीं रहेगा तो ये कह