‘लोक’ संग ‘पॉप’ का फ्यूजन अंदाज है ‘हे रमिए’


इसे लोकगीतों की ही तासीर कहेंगे कि उन्हें जब भी सुना/गुनगुनाया जाय वे भरपूर ताजगी का अहसास कराते हैं। इसलिए भी कि वे हमारे मर्म, प्रेम द्वन्द और खुशी से उपजते हैं। युवा गायक रजनीकांत सेमवाल ने बाजार के रूझान से बेपरवाह होकर विस्मृति की हद तक पहुंचे ‘लोक’ को आवाज दी है। जिसका परिणाम है उनकी ‘टिकुलिया मामा’ व ‘हे रमिए’ संकलन। जिनमें हमारा ही समाज अपने ‘पहाड़ीपन’ की बेलाग पहचान के साथ गहरे तक जुड़ा हुआ है।
रामा कैसेटस् की हालिया प्रस्तुति ‘हे रमिए’ में रजनीकांत सेमवाल लोकजीवन के भीतर तक पहुंचकर एक बार फिर लाते हैं ‘पोस्तु का छुम्मा’ को। जिसे दो दशक पहले हमने लोकगायक कमलनयन डबराल के स्वरों के साथ ठेठ जौनपुरी अंदाज में सुना था।

रजनीकांत की आवाज में सुनने के बाद फर्क सिर्फ इतना है कि पहाड़ी संगीत ने इस अंतराल में अपने कलेवर व मिजाज दोनों को बदला है। मधु मंमगाई के साथ रांसो की बीट पर यह गीत आज भी पैरों में वही थिरकन पैदा कर जाता है।
गीतकार राहुल सेमवाल व जगदीश शरण के उमदा शब्दांकन से सजे संकलन के शीर्षक गीत ‘हे रमिए’ वेस्टर्न पैटर्न में वायलियन व सैक्सोफोन के बेहतर प्रयोग के साथ खासा आकर्षित करता है। इश्क में पगी यह पेशकश विविध आयामों, रंगों, ऋतुओं, समयों, प्रतीकों को साथ रखकर ‘रमिए’ को फल-फुलने की दुआ देता है।
पहाड़ी भाषा में कहा जाता है ‘मिसै कि नाचण’ यानि एक रचे बसे अंदाज में तल्लीन होकर नाचना। ‘तुमारी याद मा’ गीत दिलों को कुछ इसी अंदाज में झंकृत करता है। इस गीत में भले ही प्रेमिका के विरह में ‘ग्रास’ न निगला जाये। लेकिन गीत रिझभिझ कर गले उतरता है। दीपक थपलियाल ने सुन्दर लिखा तो रजनीकांत के स्वरों से गीत अच्छा बना है।
पहाड़ों में सदियों से जारी कफू की संदेश वाहिकता सेमवाल के इस गीत ‘बासला म्यर कफू’ में सूदूर कांठियों से विवाहिता को एकुलास में भी तसल्ली बख्शती है। उसके उम्मीदों के जैसा ही मायके का प्यार उतना ही जीवंत आज भी है। जितना उसके वहां रहते था। यह गीत कर्णप्रिय श्रोताओं के मर्म को छुकर गहरे तक आनन्दित करता है। या कहें की ‘हे रमिए’ का यह सबसे खुबसूरत गीत भी है।
सूदूर वादियों में मेले प्रेमी प्रेमिकाओं के सबसे आसान मिलन केंद्र के रूप में प्रचलित ठिकाने रहे हैं। हालांकि हजारों की भीड़ में समाज का डर यहां भी जायज होता है। लेकिन बावजूद इसके मिलन की जुगत भी स्वाभाविक है। क्योंकि प्रेम का आशय समझने के बाद भला कौन इस अहसास से महरूम होना चाहेगा। ‘मुखे मिलदी’ जौनसार की सांस्कृतिक थाती में पगा प्रमिला जोशी द्वारा लिखा यह गीत सेमवाल से अधिक प्रमिला के ठेठ स्वरों में बेहद सुन्दर लगता है। प्रमिला जोशी के लिखे एक और सुन्दर गीत में ‘नीलू ऐ’ को भी शामिल किया जा सकता है। रजनीकांत ने विरह प्रदान इस गीत को अपने अंदाज में गाया है। जोकि औसत से कुछ ठीक है। गीत के मूड में जौनसारी के साथ ही नेपाली भाषा का हल्का सा टच अच्छा बन पड़ा है।
मुखबा क्षेत्र की वास्तविक घटना से जुड़ा कथात्मक गीत ‘ऐला चाचा’ को सेमवाल ने हिपहॉप स्टाईल में पेश किया है। नई पीढ़ी को माफिक रैप म्यूजिक के सामंजस्य से बना यह गीत युवाओं को खासा पंसद भी आयेगा। पुराने लोग इस गीत को इससे पहले ओम बधानी के स्वरों में भी सुन चुके है।
संकलन के आखिरी में पोस्तू का छुम्मा को सेमवाल ने रिमिक्स में प्रस्तुत किया है। लोक और पॉप से निकला यह फ्यूजन सॉन्ग का कमाल का है। तकनीकी का कमाल भी कह सकते हैं रिमिक्स पोस्तू का छुम्मा को।
सेमवाल के स्वरों में ताजगी के साथ वेरियेशन बड़ी खासियत है। अच्छा लगता है कि जब गीत के भावों के अनुरूप आवाज नशा पैदा करती है। मध्य तार सप्तकों में सजे रजनीकांत की ‘हे रमिए’ को सुनते हुए लगता है कि अब पहाड़ी संगीत अतीत के विरह से निकलकर युवापन में एक अलग पॉप फ्यूजन के लिबास में भी चहकने लगा है। रजनीकांत के इस एलबम में प्रमिला जोशी, मधु मंमगाई जहां स्वरों की ताजगी से रूबरू कराते हैं वहीं अमित विश्नोई व अमित वी कपूर का संगीत लोकसंगीत को नये अंदाज में प्रस्तुत करता है। यानि कि कुल जमा रजनीकांत पुराने लोक को साथ लेकर नई पीढ़ी के प्रतिनिधि गायक माने जा सकते हैं।
Review By - Dhanesh Kothari

Popular posts from this blog

गढ़वाल में क्या है ब्राह्मण जातियों का इतिहास- (भाग 1)

गढ़वाल की राजपूत जातियों का इतिहास (भाग-1)

गढ़वाली भाषा की वृहद शब्द संपदा